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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४० विकृतिविज्ञान लम्ब अक्ष की ओर हुआ करती है। आन्त्र के पेशीयस्तर में कर्कट का अन्तराभरण बहुत कम और धीरे-धीरे होता है। पेशीयस्तर पार करने पर उपलस्यस्तर में कर्कट कोशाओं के पहुँचने पर फिर लम्बात ( long axis ) में अन्तराभरण ( भरमार ) होने लगता है। कर्कटकोशा लसवहाओं में इतस्ततः ऐसे जमा हो जाते हैं कि वे छोटे दानों की माला से दिखलाई पड़ते हैं जिन्हें देखकर शल्य चिकित्सक शस्त्रकर्म के समय उन्हें यदिमका समझने तक का भ्रम कर सकते हैं। धीरे-धीरे आन्त्रनिबन्धिनीक तथा पश्च उदरच्छदीय लसग्रन्थकों तक उपसर्ग पहुँच जाता है और वहाँ से केशिकामाजिसिरा द्वारा यकृत् तक उपसर्ग पहुँच सकता है पर वह बहुत कम देखा जाता है। कभी-कभी कर्कट कोशा उदरच्छद या श्रोणिगत अंगों पर भी उग आते हैं। ___ आन्त्र कर्कट होने पर आरम्भ में कोई खास लक्षण दिखलाई नहीं देते हैं । कभीकभी थोड़ा-थोड़ा विबन्ध हो जाता है और कभी-कभी उदरशूल। यही शूल आन्त्रावरोध करके सम्पूर्ण जीवनलीला को समाप्त करने में भी समर्थ हो सकता है। रोगी को मल फीते के समान होता है। इसका कारण होता है वह निरोधोत्कर्ष जो अन्तर• भरित प्रकार के आन्त्रकर्कट द्वारा उत्पन्न किया जाता है। गोभीपुष्पसम कर्कट में रक्तस्राव और दुर्गन्धपूर्ण मल का होना पाया जाता है। इस दशा में एक बार मलबद्धता और दूसरी बार अतीसार देखा जाया करता है । मलाशय के कर्कट में मल के साथ रक्त का आना प्रारम्भिक लक्षण हुआ करता है पर जब कर्कट का स्थल अवग्रहाभ अन्त्र ( sigmoid colon ) में होता है तो रक्तातीसार बहुत बाद का लक्षण माना जाता है। उण्डकगत कर्कट के साथ अरक्तता का होना एक प्रधान लक्षण है। यह अरक्तता महाकोशीय परमवर्णिक हुआ करती है। १०-उदरच्छदीय कर्कट उदरच्छद तक कर्कट का प्रसार निम्न विधियों में से किसी के द्वारा होता हुआ देखा जाता है: १. रक्तधारा द्वारा-उदरच्छद से दूर के स्थान जैसे वक्ष में कर्कट हो तो वहाँ से रक्तधारा द्वारा कर्कट कोशा चलकर उदरच्छद तक आ सकते हैं। २. प्रत्यक्ष विस्तार द्वारा। ३. उदरच्छदीय लसवहाओं द्वारा। ४. विप्रथन ( dissemination ) द्वारा। आमाशय कर्कट उपर्युक्त अन्तिम तीनों में से किसी भी विधि से उदरच्छद में कर्कट कर सकता है। उदरच्छद में प्राथमिक दुष्ट वृद्धियाँ बहुत ही कम होती हैं। अधिच्छदीयार्बुद ही केवल देखने में आ सकता है सो भी हजारों में एकाध को । उदरच्छद की उत्तरजात वृद्धियाँ नियमतः कर्कटार्बुद के रूप में होती हैं। ये For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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