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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२६ विकृतिविज्ञान माना जाता रहा है क्योंकि इसमें फुफ्फुसान्तराल की लसग्रन्थियाँ खूब फूलती हैं। इसके विस्थाय रम्भाकारी कोशाओं से युक्त मिलते हैं। फ्रांसीसी विद्वान् इसकी उत्पत्ति अवकाशिकीय अधिच्छद में मानते हैं पर वैसा प्रमाण कोई मिलता नहीं। प्रसार-फुफ्फुस का प्राथमिक कर्कट सम्पूर्ण फुफ्फुस में फैलता है। यह प्रादेशिक लसग्रन्थकों तक फैल जाता है तथा अपने विस्थाय दूर-दूर तक पहुँचा देता है। फुफ्फुस कर्कट २ प्रकार से फैला करता है। एक तो जब कर्कट कोशा श्वास के साथ चलकर या रेंग कर श्वसनिकाओं के छोरों पर जम जावें और अवकाशिकाओं में एक नये स्तर का निर्माण कर दें। तथा दूसरो विधि यह है कि वे लसवहाओं पर आक्रमण करें और सम्पूर्ण फुफ्फुस में फैल जावें और सूक्ष्मातिसूक्ष्म श्वसनिकाओं के चारों ओर यक्ष्मा की भाँति कोशापुंज बना दें। इससे कुछ दूर पर स्थूल लसग्रन्थक मिल सकते हैं। कभी-कभी प्रादेशिक विस्तार हो जाता है जिसके कारण समीपस्थ अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते हैं। उदाहरणार्थ परिहृत् अथवा हृदय तक आक्रमण हो सकता है। महावाहिनियाँ संपीडित हो सकती हैं, कभी-कभी तो किसी महासिरा पर आक्रमण हो जाने से उसमें अर्बुदिक धनास्र मिल सकता है। कभी-कभी अन्न प्रणाली, कण्ठनाली अथवा स्वरयन्त्रगा परावर्तिनी वातनाड़ी (recurrent laryngeal nerve) तक संपीडित हो सकती है। प्रादेशिक लसग्रन्थक प्रायः सदैव ही प्रभावित हो जाते हैं। फुफ्फुसान्तराल में इसी कारण जो पदार्थ का पंज बनता है वह मूल कर्कट पुंज से बहुत बड़ा हुआ करता है । अक्षकास्थि से ऊपर की लसग्रन्थियाँ, कक्षास्थ लसग्रन्थियाँ तथा ग्रैविक लसग्रन्थियाँ तीनों ही आक्रान्त देखी जा सकती हैं। ___ फुफ्फुस कर्कट के कारण दूरस्थ भागों में विस्थायोत्पत्ति बहुधा मिल जाया करती है। यकृत् उसका एक प्रमाण है । फुफ्फुस में कर्कट होने पर यकृत् में उसका विस्थाय न बने यह बहुत ही कम देखा जाता है। दूसरा नम्बर अस्थियों तथा मस्तिष्क के विस्थायों का आता है तत्पश्चात् वृक्क एवं अधिवृक्क आते हैं। स्वीर का कथन है कि अधिवृक्क का दोनों ही ओर फुफ्फुस के अधोखण्ड में स्थित लसग्रन्थियों से सीधा सम्बन्ध होने के कारण ही अधिवृक्क में भी विस्थाय बनते हैं। वास्तव में अधिवृक्क ग्रन्थियों के विस्थायों के जो भी कारण हों फुफ्फुस में कर्कटोत्पत्ति के कारण लगभग आधे विस्थाय इस ग्रन्थि में देखे जाते हैं। विस्थायोत्पत्ति के जो स्थल ऊपर गिनाए हैं वहाँ तो सर्वसामान्य रूप में विस्थाय मिलते ही हैं। इनके अतिरिक्त जहाँ विस्थाय कभी-कभी ही मिलते हैं उनमें सर्वकिण्वी (pancreas), अवटुकाग्रन्थि ( thyroid gland ), हृदय तथा प्लीहादि मुख्य हैं। अस्थियों में वक्षस्थलीय ढाँचे के निर्माण करने वाली अस्थियों में ही विस्थाय बना करते हैं जैसे पशुकाएँ, उरःफलक अथवा कशेरुकाएँ। मस्तिष्क और अधिवृक्कों में विस्थाय का बहुधा कारण फुफ्फुसस्थ कर्कट हुआ For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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