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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०२ विकृतिविज्ञान पहुँचा सकती हैं। साथ ही मृत अर्बुदीय ऊति का आवरण चढ़ा होने पर अन्दर सजीव अर्बुद कोशाओं पर किरणों का कोई प्रभाव नहीं देखा जा सकता। कुछ क्या बहुत से कर्कट जीर्ण व्रणशोथ कर देते हैं जिससे उनके चारों ओर सघन तान्तव आवरण चढ़ जाता है जो उन्हें किरणों के प्रभाव से बचा सकता है । स्तन के अश्मोपम कर्कटार्बुद ( scirrhus cancer of tbe breast ) में यह व्रणवस्तुसम आवरण किरणों से उसकी पर्याप्त रक्षा करता है। बार-बार प्रविकिरण के कारण भी अर्बुद के चारों ओर सघन तान्तव आवरण चढ़ जा सकता है जो किरणों की मारक शक्ति को घटा सकता है। अर्बुदों में काचर विहास तथा श्लेष्मीय विह्रास होते हैं जिनके कारण भी किरणों का कम प्रभाव हो सकता है। स्तन के कर्कट में स्तन के ऊपर का स्नेह (fat) प्रविकिरण क्रिया को पूरी तरह नहीं होने देता। अस्थि में गया हुआ कर्कट तेजोहृष होता हुआ भी अवाहिन्य सघन अस्थि के अंचल में किरणों के प्रवेश रुक जाने के कारण सुरक्षित रह सकता है। अतः प्रविकिरण शास्त्र के ज्ञाताओं को तैजस किरणों के प्रयोग से पहले बहुत कुछ कठिनाइयों को पार करना पड़ता है तब वे इस चिकित्सा में कुछ सफलता प्राप्त कर पाते हैं। इस विषय को ब्वायड ने निम्न दृष्टि से स्पष्ट किया है। उसकी दृष्टि में अर्बुद की हृषता या प्रतिरोध निम्न पर निर्भर करता है: विभिन्नन ( differentiation ) अति जितनी ही अधिक प्रौढ़ प्रकार की होगी तथा जितने ही अधिक कोशा विभिन्नित होंगे अर्बुद उतना ही अधिक प्रविकिरण प्रतिरोधी पाया जावेगा। प्रथम वर्ग का अधिचर्माभ कर्कट इसका उदाहरण है। साधारण प्रकार के अर्बुद प्रायः प्रविकिरण प्रतिरोधी होते हैं परन्तु इस शब्द का प्रयोग सापेक्ष ही लेना चाहिए। साधारण अर्बुद में तो प्रविकिरण से वृद्धि का प्रतिरोध भी हो जाता है। गर्भाशय का पेश्यर्बुद उसका अपवाद है। प्रविकिरण उसे द्रवीभूत कर देता है। अनघटित (anaplastic ) तथा अत्यधिक अविभिन्नित ( undifferentiated ) अर्बुदों में जहाँ सूत्र विभजन पर्याप्त होता है वे सर्वाधिक तेजोहृष हुआ करते हैं । इनमें भी कई अपवाद मिल सकते हैं। श्लेषघटार्बुद बहुरूपी (glioblastoma multiforme ) काल्यर्बुद तथा वातनाडीजन्य संकटार्बुद अत्यधिक अनघटित तथा प्रचण्ड दुष्टार्बुद होने पर भी अत्यधिक प्रविकिरण प्रतिरोधी होते हैं। इसके विपरीत शनैः शनैः बढ़ने वाली कृन्तक विद्रधि ( rodent-ulcer ) जिसमें भाजनाङ्क भी बहुत कम होते हैं प्रविकिरण से अतिशीघ्र प्रभावित होता है। कैथी का कथन है दुष्ट अर्बुद की तेजोहृषता की मात्रा उसकी न्यष्टि में निहित निरिन्द्रिय पदार्थों की मात्रा पर निर्भर करती है। अणुदाह ( micro-incineration ) का एक प्रकार होता है उसके द्वारा अर्बुद के अणुमात्र पदार्थ को जला कर राख कर लिया जाता है। उस राख में निरिन्द्रिय ( inorganic ) तत्वों का पता लगा लेते हैं। यदि यह अधिक हुआ तो तेजोहृषता भी अधिक होगी पर यदि कम हुआ तो कम होगी। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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