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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७४ विकृतिविज्ञान दुष्ट अबुंदों में अपने कोशाओं के बिना किसी नियम में बँधे हुए पुनर्जनन करने की अपरिमित शक्ति होती है। यह पुनर्जनन या प्रगुणन सूत्रिभाजना ( mitosis ) के द्वारा सम्पन्न होता है। जैसा कि ऊपर कहा है तथा असूत्रिभाजना ( amitosis ) द्वारा भी होता है। सूत्रिभाजन रूप ( mitotic figures ) सदैव एक से नहीं होते उनमें कितनी ही और कई प्रकार की विषमताएँ तथा अनियमताएँ देखी जाती हैं। वे बहुत अधिक विस्थापित (disorientated ) होते हैं। उनके पित्र्यसूत्र (chromosomes ) संख्या और आकृति दोनों की दृष्टि से विषम होते हैं। उनकी लम्बाई कहीं कम कहीं अधिक होती है, उनकी आकृति विचित्र होती है, कहीं वे अंशतः जुड़े होते हैं तथा कहीं अण्डाकार पुंज के रूप में देखे जाते हैं। साधारण द्विलांगूलीय सूत्रिभाजना ( bipolar mitosis) न होकर जिसमें दो ताराकेन्द्र देखे जाते हैं, सूत्रिभाजना बहुलांगूलीय ( multipolar ) होती है जिसमें तीन या अधिक ताराकेन्द्र रहते हैं। ____जो दुष्ट अर्बुद बड़े द्रुत वेग से बढ़ते हैं उनमें असूत्रिभाजना ( amitosis) होती हुई देखी जाती है। इसमें न्यष्टि का विभजन हो जाता है। परन्तु कोशाप्ररस ( cytoplasm ) का विभजन नहीं होता जिसके कारण पृथक-पृथक् अनेक कोशा न दीख कर एक ही कोशा में बहुत सी न्यष्टियाँ देखी जाया करती हैं। घातक मांसार्बुद जिसे हमने संकटार्बुद ( sarcoma) कह कर पुकारा है इस असूत्रिभाजना का महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। दुष्ट अर्बुदों में सूत्रिभाजन-क्रिया का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि जितने ही अधिक सूत्रिभाजित कोशा देखे जावेंगे अर्बुद की दुष्टता भी उतनी ही बढ़ जावेगी। क्योंकि द्रुत विभजन तो कणन उति में भी होता है, अन्य पुनर्जनित ऊति में भी सूत्रिभाजना देखी जा सकती है। (५) दुष्ट अर्बुद उत्तरजात वृद्धियाँ ( secondary growths ) उत्पन्न करते हैं जिन्हें विस्थाय ( metastases ) कहते हैं। ये विस्थाय लसग्रन्थियों में उत्पन्न होते हैं तथा दूरस्थ अंगों में देखे जाते हैं। कोई-कोई दुष्ट अर्बुद (जैसे श्लेषार्बुद) कोई भी विस्थाय उत्पन्न नहीं करता। (६) दुष्ट अर्बुद से यह कदापि सम्भव नहीं कि वह जिस उति में उत्पन्न होता उस ऊति की रचना की पुनरुत्पत्ति कर सके । जितना ही वह इसमें असमर्थ रहता है उतना ही अघटित (anaplastic) या अविभिनित (undifferentisted ) अर्बुद होता है और उतनी ही घातकता या मारात्मकता ( malignancy ) उसमें पाई जाती है। ___इसके विपरीत एक साधारण या मृदु अर्बुद ग्रन्थीय या अन्य रचनाओं को पूर्णतः उत्पन्न कर देता है अर्थात् यहाँ विभिन्नन पूर्ण होता है। जब कोशा अपने समीप के अंगों के कोशाओं के साथ स्वाभाविक सम्बन्ध बनाए रखने में असमर्थ हो जाते हैं तो इस स्थिति को ध्रुविता का अभाव ( loss of polarity ) कहा जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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