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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फिरङ्ग हाँथ ऊँची नीची जगह पर पड़ जाया करते हैं। इस विषय का कुछ वर्णन हम पहले भी कर चुके हैं। रक्तवाहिनियों पर फिरंग का प्रभाव धमनियों ( arteries ) पर फिरंग का बहुत अधिक प्रभाव देखा जाता है । पर जब हम नैदानिक दृष्टि से प्रत्यक्ष देखने का यत्न करते हैं तो हमें केवल दो ही ऐसे स्थान मिलते हैं जहाँ फिरंग के घातक परिणाम का कुछ बोध हो पाता है इनमें एक महाधमनी है और दूसरा मस्तिष्क है । वास्तव में तो फिरंग क्षुद्र वाहिनियों का रोग है । वाहिनियों में भी लसवहाओं का तथा उन लसवहाओं ( lymphatics ) का जो तुद्र रक्तवाहिनियों के साथ-साथ रहती हैं। जिनमें सुकुन्तलाणु ठहरे रहते हैं। इस लिए मूलविक्षत का स्वरूप परिधमनीपाक या परिवाहिनीपाक (peri arteritis) का होता है और उसके साथ-साथ वाहिनी अन्तश्छदपाक या धमन्यन्तश्छद (endarteritis) रह सकता है। यतः बाह्य और मध्य चोल बृहत् या मध्यमाकारीय वाहिनियों के वाहिन्यवाहिनियों द्वारा सींचे जाते हैं अतः इन धमनियों के इन चोलों में अधिक आघात देखा जाता है। वर्षों से महाधमनी तथा मस्तिष्कस्थ वाहिनियों के ऊपर फिरंगीय प्रभाव का अवलोकन किया जाता रहा है इसी कारण इसके सम्बन्ध में जो भी साहित्य उपलब्ध हो सका है उसको हम यथामति प्रकट करने वाले हैं। फिरंगिक महाधमनीपाक फिरंगिक विक्षतों में सामान्यतम विक्षत महाधमनीपाक का माना जाता है । वार्थिन का तो यहाँ तक कथन है कि फिरंग के प्रत्येक रुग्ण में महाधमनी में अवश्य ही विक्षत मिलता है। यह प्रौढ़ावस्था में पाया जाने वाला रोग है जो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक मिलता है। प्रारम्भिक विक्षत महाधनी कपाट ( valve ) से १-२ इञ्च ऊपर होता है जहाँ से यह नीचे ऊपर दोनों ओर फैलता है। औदरिक महाधमनी में महाप्राचीरा पेशी तक तो विक्षत मिल सकते हैं परन्तु उसके नीचे नहीं देखने में आते । हाँ, नीचे बाह्य चोल में अण्वीक्षदृष्ट विक्षत मिल सकते हैं। वास्तव में उपसर्ग सर्वप्रथम बाह्यचोल में ही लगता है वहाँ से वह उन लसवहाओं तक फैल जाता है जो वाहिन्य वाहिनियों ( vasa vasorum ) के साथ-साथ जाती हैं। इस प्रकार वह मध्यचोल तक या उससे भी आगे पहुँच जाता है। क्लौत्ज के अनुसार यतः महाधमनीय तोरण ( aortic arch ) तथा आरोही महाधमनी ( ascending aorta ) की लस पूर्ति बहुत अधिक होती है इस कारण फिरंग का मुख्य प्रभाव क्षेत्र यहीं रहता है । अर्थात् जहाँ तक वाहिनियों की प्राचीरों में लसवहाओं का प्रवेश होता है वहीं तक फिरंग का प्रभाव प्रारम्भ में देखा जाता है। इसी कारण जब परिवाहिनीय For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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