SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फिरङ्ग ५७६ तत्र बाह्य फिरंगः स्याद्विस्फोटसदृशोऽल्परक् । स्फुटितो व्रणवद्वेधः सुखसाध्योऽपि स स्मृतः ॥ सन्धिष्वाभ्यन्तरः स स्यादामवात इव व्यथाम् । शोथञ्च जनयेदेष कष्टसाध्यो बुधैः स्मृतः ।। तथा तृतीय के साथ निम्न उपद्रव रहते हैं :कार्य बलक्षयो नासभंगो वह्वेश्च मन्दता । अस्थिशोषोऽस्थि वक्रत्वं फिरंगोपद्रवा अमी ।। इन श्लोकों का भाव यह है कि भावमिश्र के मत से फिरंग की तीन अवस्थाएँ होती हैं:(१) बाह्यावस्था या बाह्य फिरंग ( primary stage of syphilis )। (२) आभ्यन्तरावस्था या आभ्यन्तर फिरंग (second stage of syphilis)। (३) बहिरन्तर्भवावस्था या बहिरन्तर्भवफिरंग (tertiary & quaternary stage of syphilis ), बाह्यफिरंग में अल्पवेदनायुक्त विस्फोट होते हैं जो व्रण के समान फूटते हैं और यह सुखसाध्य होता है। आभ्यन्तरफिरंग में आमवात के समान सशूल और सशोफ सन्धिपाक होता है और यह कष्टसाध्य होता है। बहिरन्तर्भवफिरंग में कृशता, बलक्षय, नासाभंग, अग्निमान्द्य, अस्थिशोथ, अस्थिवक्रतादि उपद्रव रहते हैं और यह असाध्य होता है। हम आगे के अपने वर्णन में फिरंग की अवस्थाओं की विस्तृत विवेचना करने के लिए प्रथम द्वितीय तृतीयादि अवस्थाओं का नामोल्लेख न कर भावमिश्र प्रोक्त नामों का ही प्रयोग करेंगे। फिरंग की पूर्वावस्था ( early stage of syphilis ) तथा फिरंग की उत्तरावस्था ( later stage of syphilis ) करके कुछ लोग इसे केवल दो अवस्थाओं में भी विभक्त करते हैं। पहली अवस्था में बाह्यफिरंग तथा आभ्यन्तरफिरंग ये दो आती हैं और दूसरी में बहिरन्तर्भवफिरंग का समावेश किया जाता है। फिरंग के दो महत्त्वपूर्ण प्रकार और हैं जिनमें एक अवाप्त फिरंग ( acquired syphilis ) कहलाता है जिसका अर्थ है व्यक्ति द्वारा स्वकर्मों से फिरंगोपसृष्ट होना तथा दूसरा सहजफिरंग कहलाता है। इसका अर्थ है कि शिशु द्वारा माता के कर्मों से फिरंगोपसृष्ट होना । सहजफिरंग में हम ऊपर वर्णित प्रकारों को उस प्रकार नहीं पाते क्योंकि वहां तो शिशु के शरीर की विविध उतियों में फिरंग के सुकुन्तलाणु पहले से ही व्याप्त होते हैं। इससे पूर्व कि हम अवाप्त फिरंग का वर्णन करें सर्वप्रथम सहज फिरंग का ही वर्णन आरम्भ करते हैं: सहजफिरंग सहजफिरंग ( congenital syphilis ) गर्भाशय के भीतर गर्भ के माता के द्वारा फिरंगोपसृष्ट होने की क्रिया है । माता के अपरा में होकर गर्भ के रक्त में सुकुन्तलाणु प्रविष्ट हो जाते हैं और रक्त द्वारा गर्भ की विभिन्न ऊतियों में पहुँच जाते हैं। पिता के द्वारा भी गर्भ को फिरंगोपसर्ग लग सकता है यह सिद्धान्ततः सत्य है क्योंकि पुरुष के शुक्र द्वारा उपसर्ग स्त्री के बीज तक जा सकता है। पर इसके लिए For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy