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________________ www.kobatirth.org विकृतिविज्ञान शोध और व्रणशोथ के इन प्रकारों को देखकर कई एक उलझनें पाठकों के हृदय में आवेंगी पर उनके आने का कोई कारण नहीं। क्योंकि व्रणशोथ की पहचान उसकी आमावस्था, उसके बाद पच्यमानावस्था और अन्त की पक्वावस्था से होती है। जब कि साधारणशोथ में ये तीनों अवस्थाएँ नहीं ही होती हैं । सम्पूर्ण आगन्तुज, रक्तज, अभिघातज और विषज शोफ व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया ( inflammatory reaction ) को ही प्रगट करते हैं । शोथ में क्या होता है ? अब हम आधुनिक वैज्ञानिक जैसा मानते हैं उस विचार को उपस्थित करते हैं कि आखिर व्रणशोथ क्या बला है और शरीर में इसके कारण क्या बात होती है । मान लिया कि किसी के पैर में किसी ने लाठी मारी और वह स्थान सूज गया फिर पक गया और एक फोड़े का रूप धारण कर लिया। इसमें हमें यह देखना है कि लाठी मारने के बाद शरीर के पैर में स्थित कोशाओं में क्या क्या प्रतिक्रियाएँ हुईं । Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया जो शरीर में विभिन्न कारणों से होती हुई देखी जाती है उसमें २ प्रधानतः भाग लेते हैं- एक रक्त और दूसरे कोशा । हम इन्हीं दोनों के क्रियाकलाप को आगे प्रकट करेंगे । व्रणशोथोत्पत्ति में रक्त का कार्य जिस स्थान पर आघात हो जाता है वहाँ सर्वप्रथम कार्य होता है-तेजी से रक्त का पहुँचना । रक्तप्रवाह की यह तेजी बहुत थोड़ी देर रहती है और फिर प्रवाह मन्द पड़ जाता है । इस तेजी का कारण प्रतिक्षेप क्रिया ( reflex action ) द्वारा धमनिकाओं ( arteriole ) का अभिस्तरण dilatation ) है । धमनिकाओं का यह अभिस्तरण उनके केशालों ( capillaries ) के अभिस्तरण से पहले होता है और जैसा कि अभी अभी कहा है बहुत थोड़ी देर रहता है । रक्तप्रवाह की मन्दता - यह दूसरा कार्य है जो उस स्थान पर होता है । इस मन्दता का प्रधान कारण है केशालों का घात ( paralysis of the capillaries ) । दूसरा कारण है केशालों के अन्तश्छदीय कोशाओं का गण्ड या उत्सेध ( swelling of the endothelial living cells of the capillaries ) । तीसरा कारण है केशालों में स्थित रक्त के जलीयांश में चले जाने के कारण रक्त के आत्मगत्व ( viscosisy ) की वृद्धि तथा चतुर्थ और अन्तिम कारण है चारों ओर की ऊतियों भरे हुए तरल के प्रपीडन से केशालों का समवसाद (collapse of capillries ) । अब हम रक्तप्रवाह को मन्द करने वाले इन चारों कारणों पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं । केशालों का घात किस प्रकार हो सकता है उसके लिए दो विद्वानों की २ रायें हैं । एक का नाम लैविश है । वह कहता है कि जिस प्रकार ऊतितिक्ती ( histamine ) नामक पदार्थ शालों का घात करके उनकी संकोचनशीलता को नष्ट कर देता है उसी For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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