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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० विकृतिविज्ञान तथा शरीर की प्रन्थियों की सर्वसामान्यवृद्धि द्वारा रोग का निदान हुआ करता है। लसकायाणुओं की वृद्धि, क्षुद्र एककायाणुओं की अधिक संख्या में वृद्धि खासकर अपूर्ण लसकायाणुओं की वृद्धि द्वारा निदान की पुष्टि की जाती है। अकणकायाणूत्कर्ष में रसचित्र में बहुन्यष्टिसितकोशाओं की बहुत बड़ी कमी और अधिक काल तक शुल्बौषधियों के प्रयोग का इतिहास मिलेगा। रोगी पीला मिलेगा। अविरामज्वर ( Continued fever )-आधुनिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में ऐसा ज्वर जो लगातार १ सप्ताह तक आता रहे और उसे शमन करने के समस्त साधारण उपचार व्यर्थ सिद्ध हो अविरामज्वर कहलाता है। वे अवस्थाएँ जिनमें १ सप्ताह तक ज्वर आना सम्भव है अनेकों हैं । आन्त्रिकज्वर (enteric fever ) एक अविरामज्वर है। इसका आरम्भ शिरोवेदना, ग्लानि और आन्त्रिक कष्ट के साथ होता है। इसमें उदर भरा और फूला हुआ मिलता है। प्लीहा बढ़ जाती है, जिह्वा पर एक श्वेत वर्ण का आवरण चढ़ जाता है, नेत्र चमकदार तथा पुतलियाँ विस्फारित हो जाती हैं, कपोलों पर एक प्रकार की लाली चढ़ी हुई मिलती है ५ से ७ वें दिन तक सर्षपोपम या राजिकासम अथवा मुक्तासम छोटे छोटे दाने निकल आते हैं। रोगी जो हर दृष्टि से ठीक होता है इस अवस्था में बधिर हो जाता है । फुप्फुस साफ होते हैं। तापांश १०० से १०२ तक रहता है फिर भी नाड़ी की गति मन्द (७०.८०) रहती है। मटर की दाल के रंग का अतिसार एक सप्ताह समाप्त होते होते बन जाता है। किन्हीं किन्हीं में अतिसार के स्थान पर विष्टम्भ पाया जाता है। अविरामज्वर का दूसरा कारण तीव्र श्यामाकसम यधमा ( acute miliary tuberculosis ) हुआ करती है। तीव्रश्यामाकसम यक्ष्मा आन्त्रिक ज्वर से मिलताजुलता रोग होता है पर कुछ लक्षणों और चिह्नों के बलपर इसको पहचाना जा सकता है। यहाँ चेहरा धूमिल होता है न कि आन्त्रिकज्वर के समान लाल । रोगी को कोई विशेष कष्ट नहीं मालूम पड़ता है पर आन्त्रिकवरी पर्याप्त बेचैन पाया जाता है। इस रोगी को इतना पसीना आता है कि उसके सब वस्त्र तर हो जाते तथा बदलने पड़ते हैं। तीव्र श्यामाकसम यक्ष्मी का इतिहास देखने से ग्रन्थियों, अस्थियों, सन्धियों में से कहीं न कहीं यक्ष्मा के उपसर्ग की साक्षी मिल सकेगी। ज्वर तीव्र श्या. य. में एक बार अवश्य उतर जाता है। नाड़ी की अति १२० से नीचे नहीं जाती श्वास की गति प्रति मिनट ३० तक होती है। जो आन्त्रिकज्वरों में नहीं देखी जाती । प्लीहा इसमें भी बढ़ती है। इन दोनों रोगों में से कौन-सा है इसकी परीक्षा का सर्वेत्तम उपाय दानों की खोज है । यदि एक भी गुलाबी या मुक्तासम दाना पालिया गया तो अवश्य ही ज्वर का कारण आन्त्रिकज्वर माना जाना चाहिए। यदिमक आन्त्रपाक के कारण ती. श्या. य. से पीडित व्यक्ति को अतीसार भी पाया जा सकता है। पर यहाँ मलका रंग मटर की दाल जैसा नहीं होता। उदर भी फूला हुआ और स्पर्शाक्षम नहीं पाया जाता । दूसरे हरश्मि-चित्रण लेने पर फुप्फुसों में तुषारझल्झाभास ( snow storm appearance ) मिलेगी। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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