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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ विकृतिविज्ञान . कर्णिक सन्निपात .. (१) दोषत्रयेण जनितः किल कर्णमूले तीव्रा ज्वरे भवति तु श्वयथुर्व्यथा च । ___ कण्ठग्रहो बधिरता श्वसनं प्रलापः प्रस्वेदमोहदहनानि च कर्णिकाख्ये ॥ (२) ज्वरोग्रतापकर्णातिंग्रन्थिः क्रोधःप्रलापनम् । श्वासकासप्रसेकाः स्युः कर्णिकः कृच्छ्रसाध्यकः ॥ (मा. नि.) (३) प्रलापश्रुतिहासकण्ठग्रहाङ्गव्यथाश्वासकासप्रसेकप्रभावम् । ज्वरं तापकर्णान्तयोर्गल्लपीडा बुधाः कर्णिकं कष्टसाध्यं वदन्ति ॥ (आ.) (४) ज्वरः कर्णान्तशोफश्च श्वासकम्पप्रलापनम् । स्वेदः कण्ठग्रहस्तापो हल्लासोऽङ्गव्यथापि च ॥ कर्णिके सन्निपाते च लक्षणानि च पण्डितैः। (नि. ना.) (५) प्रलापजिह्वास्फुटनहिक्काकासाङ्गकम्पनम् । कर्णान्तशोफस्तापश्च कर्णिके सान्निपातिके ॥ (चि.! (६) कण्ठग्रहायासशरीरपीडा सन्तापकासश्वसनप्रसेकाः। शोफश्च शूलं बहुकर्णमूले स कष्टसाध्यः किल कर्णिकाख्यः ॥ ( वै. वि.) कर्णिक सन्निपात में प्रमुखतम लक्षण है कर्ण के मूल में स्थित ग्रन्थि ( parotid gland ) में शोथ हो जाना और शूल होना। साथ में तीव्र ज्वर रहता है। इस ग्रन्थि में शोथ का परिणाम कण्ठग्रह या कण्ठ के अवरुद्ध होने में भी पड़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप श्वास की प्रति मिनट गति बढ़ जाती है तथा कान पर भी प्रभाव पड़ने से रोगी की श्रवणशक्ति में भी कमी आ जाती है। रोग की कठिन अवस्था के कारण प्रलाप (डिलीरियम) का पाया जाना अस्वाभाविक घटना नहीं है अपि तु प्रत्येक कर्णिकसन्निपातग्रस्त रोगी व्वर की तीव्रता के कारण प्रलाप करता हुआ पाया जाता है। लालाग्रन्थि शोथ के कारण मुख में प्रसेकाधिक्य भी देखा जा सकता है। प्रस्वेद, मोह, दाह, क्रोध, कास, अङ्गपीडा, हृल्लास, जिह्वास्फुटन, हिक्का, कम्प, श्रम तथा शोथ के लक्षण विभिन्न रोगियों में कमी बेशी के साथ देखे जा सकते हैं। कण्ठकुब्ज सन्निपात ( १ ) कण्ठः शूकशतावरुद्धवदतिश्वासः प्रलापोऽरुचि हो देहरुजा तृषापि च हनुस्तम्भः शिरोऽर्तिस्तथा । मोहो वेपथुना सहेति सकलं लिङ्गं त्रिदोषज्वरे यत्र स्यात्सहि कण्ठकुब्ज उदितः प्राच्यश्चिकित्साबुधैः ॥ ( भा. प्र.) ( २ ) हनुकण्ठशिरश्शूलो मोहकम्पज्वरानिलाः। मूर्छादाहप्रलापाः स्युरित्याद्या कण्ठकुब्जके ॥ (मा. नि.) . (३) शिरोऽर्तिकण्ठग्रहदाहमोहकम्पज्वरारक्तसमीरणार्तिः । हनुग्रहस्तापविलापमूर्छाः स्यात्कण्ठकुब्जः खलु कष्टसाध्यः॥ ( आ.) For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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