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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वर ४११ तम-या आँखों के आगे अँधेरा सा आना एक लक्षण है जिसमें पित्त दोष के प्रकोप की ओर इङ्गित होता है। यह लक्षण सर्वसाधारण रूप से मांसगत ज्वर में, पित्तज पाण्डु में और पित्तावृत वात में पाया जाता है । इस लक्षण को चरक ने नहीं लिखा न वाग्भट में ही इसका उल्लेख पाया जाता है। अरुचि-यह लक्षण जहाँ जहाँ ज्वर मात्र होता है वहीं वहीं पाया जाता है इसी कारण इसे सुश्रुत और वैद्यविनोदकार के अतिरिक्त अन्य किसी ने भी उल्लेखनीय नहीं समझा। वाग्भट के टीकाकार हेमाद्रि ने पर्वभेद से सम्पूर्ण शरीर की सन्धियों में भेदनवत् पीड़ा को स्वीकार किया है। वातकफज्वर (१) शीतको गौरवं तन्द्रा स्तै मित्यं पर्वणाञ्च रुक् । शिरोग्रहः प्रतिश्यायः कासः स्वेदाप्रवर्तनम् । सन्तापो मध्यवेगश्च वातश्लेष्मज्वराकृतिः ।। ( चरक ) (२) स्तमित्यं पर्वणां भेदो निद्रागौरवमेव च । शिरोग्रहः प्रतिश्यायः कासः स्वेदाप्रवर्तनम् ।। सन्तापो मध्यवेगश्च वातश्लेष्मज्वराकृतिः । ( सुश्रुत ) (३) शूलकासकफोत्क्लेशशीतवेपथुपीनसाः। गौरवारुचिविष्टम्भवातश्लेष्मसमृद्धये ॥ ( सुश्रुतपाठान्तर ) ( ४ ) तापहान्यरुचिपर्वशिरोरुकपीनसश्वसनकासविबन्धाः । शीतजाड्यतिमिरभ्रमतन्द्राश्लेष्मवातजनितज्वरलिङ्गम् ॥ ( वाग्भट ) ( ५ ) शीतं वेपथुपर्वभङ्गवमथुर्गात्रे जडत्वं चरुङ. मन्दोष्मारुचिबन्धनं परुपता कासस्तमः शूलवान् । तन्द्रा कूजनतात्मलौल्यमथवा स्तमित्यज़म्भारुचिः प्रस्वेदोमलमूत्ररोधसहितः स्याच्छ्लेष्मवातज्वरः ।। ( हारीत) ( ६ ) स्तमित्यं कासमन्तापौ गौरवं पर्वमूर्धरुक् स्वापोऽस्वेदः प्रतिश्यायो वातश्लेष्मज्वराकृतिः । ( अञ्जननिदान ) (७) स्तमित्यकासारुचिपर्वभेदशिरोरुजःपीनसमध्यवेगौ। सन्तापकम्पौ गुरुता शरीरे निद्रा व्यथा वातकफज्वरे स्यात् ॥ (वैद्यविनोद) ( ८ ) पवनकफविकारहेतुकरसविरसयाजाताजीर्णजन्यामयमांसमेदोधातुचर उभयलक्षणसहितः पवनकफविकारजातज्वरः । ( आयुर्वेदसूत्र ) वातकफज्वर का जो वर्णन विभिन्न ग्रन्थों में मिलता है उससे लगभग २६ लक्षणयुक्त एक व्याधि का ज्ञान होता है। इन लक्षणों में से कभी कोई कम और कभी कोई अधिक अथवा कभी किसी का अभावादि होने से एक ही यह व्याधि कई रूपों में देखी जा सकती है पर मूलतः गौरव, निद्रा, स्तमित्य, पर्वभेद, शिरोग्रह, प्रतिश्याय, कास, अतिस्वेद और मध्यम सन्ताप ये लक्षण अवश्य ही मिलते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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