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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वर ३६७ लोग स्तिमितो वेगः को ज्वर का मन्द उद्गम मानते हैं ऐसा भी उल्लेख डल्हण के निबन्ध में है। मधुकोशकार भी स्तैमित्यमङ्गानामाईपटावगुण्ठितत्वम् ही मानते हैं। शरीर में जलीयांश की वृद्धि या तरल भाग का बाहर की ओर गति करना यह कफ की कुपितता का प्रमाण माना जाता है । कफ के कोप में जहाँ श्लेष्मलकला में उपस्थित प्रन्थियाँ तथा लालग्रन्थियाँ अपने अपने स्रावों को प्रचुरता के साथ बाहर निकाल कर प्रसेकोत्पत्ति करती हैं वहाँ स्वेदग्रन्थियाँ भी शान्त नहीं बैठतीं उनसे भी प्रस्वेद निकलता है यह स्वेद स्निग्धता लिए हुए होता है। कफ के स्निग्ध गुण के कारण इसी स्वेद से स्निग्धगात्रता आ जाती है जिसे हारीत और वसवराज दोनों ने स्वीकार किया है। रोगी स्वयं यह अनुभव करता है कि उसका शरीर स्वयं गीले कपड़े से ढंका हुआ है उसमें आर्द्रता है तो क्या वास्तव में यह आभासमात्र ही होता है या गीलापन मिलता भी है । इन्फ्लुएंजा, हे फीवर अथवा प्रतिश्याय से पीडित व्यक्तियों से पूछने से पता चलेगा कि गीले कपड़े से ढंका सा शरीर हो गया है अर्थात् उन्हें रूक्षता के स्थान पर शीतलता और स्निग्धता का अनुभव होने लगा है। वास्तव में गीलापन बहुत कम मिलता है। हाँ, जहाँ स्वेदागम होता रहता है वहाँ यह गीलापन पाया जाता है। स्वेदागम भी पर्याप्त क्षेत्रों में पाया जाता है। कफज्वरी को स्वेद आता है और शरीर को भिगो देता है यह कुछ का कथन है और कुछ ऐसा मानते हैं कि यह स्वेद निरन्तर थोड़ा थोड़ा बहता रहता है और शरीर को आई रखता है। स्वेद निकले या न निकले पर इतना अवश्य सत्य है कि चमड़े और श्लेष्मलकला के भीतर कफ का पूरा पूरा कोप है जिसके कारण चमड़ी और श्लेष्मलकला में तरलांश निरन्तर बनता और बढ़ता रहता है। इसी तरलांश की प्रचुरता के कारण कफज्वर में ज्वर का वेग कम पाया जाता है और उसे जोर से बुखार न आकर मन्द प्रकार का ही ज्वर बना हुआ रहा करता है। __डाक्टर घाणेकर महोदय ने निद्रा के सम्बन्ध में निम्न विचार एक स्थल पर प्रकट किए हैं:___'वात और पित्त की वृद्धि में निद्रा का नाश होता है क्योंकि वाताधिक्य से मनोभ्रमण अधिक होता है और पित्ताधिक्य से दिमाग में जलन मालूम होती है। निद्रा श्लेष्मतमोभवा है । इसलिए श्लेष्मा की वृद्धि में निद्रा अधिक हुआ करती है। और श्लेष्मविरुद्ध पित्त और वात की वृद्धि में घट जाती है:___ 'तमोभवा श्लेष्मसमुद्भवाच। निद्रा श्लेष्मतमोमवा। इलेष्मावृतेषु स्रोतस्सु श्रमादुपरतेषु च इन्द्रियेषु स्वकर्मेभ्यो निद्रा निशति देहिनम् ( अष्टाङ्गसंग्रह )।' निद्रा की उत्पत्ति कफ और तमोगुण से प्रायः होती है। कफज्वर में कफ की कुपितता सर्वप्रथम आवश्यक है, इस कारण कफन्वर में निद्रा का होना पूर्णतः स्वाभाविक है । इसी कारण कफज्वर के लक्षणों का वर्णन करते हुए चरक ने निद्राधि For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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