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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वर ३६१ गुरुगात्रता या गौरव हमें निम्न रोगों में अधिकतर मिलता है १. कफज्वर, २. कफज प्लीहोदर, ३. कफज उदररोग, ४. सामज्वर, ५. रसगत ज्वर, ६. कफज यक्ष्मा, ७. कफज अण्डवृद्धि, ८. कफज विद्रधि, ९. कफाधिक वातरक्त, १०. कफार्श, ११. सामवायुविकार, १२. कफावृत वात, १३. मांसगत वातव्याधि, १४. मेदोगत वातव्याधि, १५. कफज मूर्छा, १६. कफज मदात्यय, १७. सन्निपातज्वर, १८. कफज श्वित्रकुष्ठ, १९. कफावृत उदान, २०. कफावृत व्यान, २१. कफज गुल्म, २२. कफज अतीसार, २३. कफज कास । __ गात्रगुरुता के अन्य रोगों में भी पर्याप्त उदाहरण मिलते हैं अतः जिस किसी अंग में गानगौरव देखा कि उसी को कफज ज्वर मान लिया सो ठीक नहीं है। क्योंकि वातोदर में शरीर का अधोभाग गौरवान्वित हो जाता है। कफातिसार, विषमाग्निदोष से, कफज ग्रहणी, अथवा कफोदर में उदर में गौरव मिलता है । उरुस्तम्भ में ऊरु में गौरव मिलता है। कफजातीसार होने पर गुद गौरव मिलता है। गुरुता बस्ति में कफाश्मरी, कफातिसार या कफज मूत्रकृच्छ्र के होने से ही देखी जाती है। सिर का भारीपन कफज यक्ष्मा, कफार्श, ग्रहणी, विषमज्वर तथा कफज कास इन पाँच रोगों में देखा जाता है । मूत्रसंग होने पर मेढ़गौरव मिलता है। कफज कास अथवा कफज हृद्रोग में हृद्वौरव पाया जाता है। ____ अतः केवल गौरव मात्र से कफज्वर का बोध नहीं हो सकता पर कोई भी ऐसी कफज व्याधि नहीं प्रगट हुई जिसमें लक्षण या उपलक्षण के रूप में कफ के गुण गौरव का उल्लेख न किया जासका हो। ___ जाड्य या जड़ता का शास्त्रीय उल्लेख वातकफज्वर, कफज्वर, विषमज्वर इन तीन व्याधियों में ही हो गया है । शिरोजाड्य कफज तृष्णा में तथा हृजाड्य सामज्वर में मिलता है। गौरव के महत्त्व के प्रति उचित सम्मान प्रदर्शित करने के लिए चरक ने उसे ज्वर के उपरान्त तथा सुश्रुत ने सर्वप्रथम उसका स्मरण कर लिया है। डल्हणाचार्य द्वारा उद्धृत श्लोक में गौरव का उल्लेख यथास्थान हुआ है। वाग्भट ने अरुचि के बाद जाड्य का ही स्मरण किया है। हारीत ने भी इसे तीसरा स्थान दिया है। उग्रादित्य तथा वसवराज ने शिरोगुरुत्व अथवा शिरोऽर्तिः का उल्लेख किया है। अञ्जननिदानकार तथा बैद्यविनोदकार दोनों ने ही गौरव के गौरव को आँका है। जब यह गौरव शरीर की ऐच्छिक पेशियों की क्रियाशक्ति पर प्रभाव डालकर उन्हें दुर्बल बना देती हैं तो शरीर श्लथ या शिथिल हो जाता है और उसके कारण आलस्य की शरीर में वृद्धि हुआ करती है। ___ कफजज्वर में शरीर के सन्ताप की जो स्थिति रहा करती है वह एक स्पष्ट प्रकार की ही होती है। उसे हम नात्युष्णगात्रता कह सकते हैं । अर्थात् इसमें ज्वर रहता है, शरीर गरम रहता है और ताप बढ़ता है पर वह अत्यधिक नहीं होता। रोगी की स्थिति पित्तज्वरी के समान ज्वर के तीव्र वेग से व्याप्त नहीं मिलती । गात्र उष्ण रहता For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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