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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ विकृतिविज्ञान ऋतु में पित्त का प्रकोप बहुत से कारणों से हो, वसन्त ऋतु में उसी प्रकार कफ का प्रकोप कई बड़े बड़े कारणों से हो और प्रावृट में वात का प्रकोप बहुत से कारणों से हो तो प्राकृतः सुखसाध्यस्तु वसन्तशरदुद्भवः में अन्तर्निहित भाव नष्ट होगा कि नहीं ? पर नहीं वहाँ तो कालप्रकृतिजात वर्षास्वम्लविपाकि जलादि कारणों से सञ्चित हुआ पित्त शरत्काल में सूर्य के तेज से अभिव्यक्त होकर जो पित्तज्वर का रूप ग्रहण करता है वह सुखसाध्य है न कि पित्तकारक कारणों से उत्पन्न हुआ ( उसी काल का ही चाहे सही) पित्तज्वर । इधर शरत्काल का पित्तज्वर और वसन्तकालीन कफज्वर केवल सूर्य की किरणों के द्वारा ही उत्तेजित होते हैं अतः सुखसाध्य हैं पर वर्षाकालीन वातज्वर के प्रेरक कारण अनेक होते हैं अतः वह कष्टसाध्य होता है। वैकृत ज्वर सभी कष्टसाध्य माने गये हैं। सुख साध्य रोग में उपद्रव कोई नहीं होना चाहिये। पीछे हम पादटिप्पणी में उपद्रवों की तालिका दे चुके हैं पर उसकी वास्तविक परिभाषा हैउपद्रवस्तु खलु रोगो रोगान्तरकालजो रोगाश्रयो रोग एव स्थूलोऽणुर्वा रोगात् पश्चाज्जायत इति । अब असाध्य ज्वर के लक्षण जो चरकसंहिता में वर्णित हैं उपस्थित किए जाते हैं:हेतुभिर्बहुभिर्जातो बलिभिर्बहुलक्षणः। जारः प्राणान्तकृद् यश्च शीघ्रमिन्द्रियनाशनः ।। सप्ताहाद्वा दशाहादा द्वादशाहात्तथैव च । सप्रलापभ्रमश्वासस्तीक्ष्णो हन्याज्ज्वरो नरम् ।। ज्वरः क्षीणस्य शूनस्य गम्भीरो दैर्धरात्रिकः। असाध्यो बलवान् यश्च केशसीमन्तकृज्ज्वरः ।। बहुत से हेतुओं के कारण उत्पन्न हुआ ज्वर जिसमें बहुत से बलवान् लक्षण भी हो शीघ्र प्राणान्त कर देता है। ज्वर की बहुलिङ्गता (अधिकलक्षणता) बहुत खराब मानी जाती है । परन्तु बहुत से बलवान् हेतुओं के कारण व्याधि भी बहुत से लक्षणों वाली बनेगी यह आवश्यक नहीं है। अथवा एक या दो हेतुओं के कारण उत्पन्न ज्वर सदैव एक या दो रोग लक्षणों से युक्त होगा यह भी नहीं कहा जा सकता। बलवान् बहुत से हेतुओं से युक्त अदृष्ट प्राक्तनकर्मादि कारणों से ज्वर में अल्पलक्षण या बहुलक्षण देखे जा सकते हैं। शरीर के कितने दूष्यों के साथ दोषों का सम्पर्क है जितने अधिक दूष्यों के साथ सम्पर्क होता है उतने ही अधिक रोग के लक्षण भी ज्वर के साथ देखे जा सकते हैं। इसी प्रकार विकृति विषम समवाय के कारण अल्प हेतु होने पर बहुलक्षणता और बहुत हेतु होने पर अल्पलक्षणता पाई जा सकती है। __थोड़े हेतुओं के कारण बहुलक्षण जनक दोष दुष्टि के द्वारा बहुलक्षणता उत्पन्न हो जाने पर भी प्राणान्तकारी असाध्यता नहीं आती। इसी प्रकार अबलसम्पन्न या अल्पबल युक्त बहुत से या थोड़े हेतुओं से बहुत से लक्षणों से युक्त हुए ज्वर में भी प्राणान्त का कोई कारण दिखाई नहीं पड़ा करता। जिस ज्वर के कारण शारीरिक ज्ञानेन्द्रियों या कमन्द्रियों में से किसी एक या कई की क्रियाशक्ति नष्ट होती चली जावे और यह इन्द्रिय नाश बहुत द्रुतगति से हो तो समझ लेना चाहिए ज्वर या रोग असाध्य है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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