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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २१ ] विषय छूट गये हैं जिनका सम्बन्ध सामान्य वैकारिकी के विषयों के साथ पूरा-पूरा नहीं जुड़ता। इतना सब होने पर भी ग्रन्थ में वह सब है जिसे जान लेने पर कोई भी देश-विदेश में सरलतया वैकारिकी शास्त्र का परमनिष्णात माना जा सकता है। मेरी इच्छा यह भी थी कि ग्रन्थ को बोधगम्य करने के लिए एक आरम्भिक अध्याय और जोड़ कर औतिकी (हिस्टोलोजी) का वर्णन कर दूँ पर वह इस ग्रन्थ के लिए एक प्रकार से अप्रासङ्गिक ही था। उसे तत्सम्बन्धी ग्रन्थों में ही पाठक को पढ़ना अभीष्ट है। इसी प्रकार दोषधातुमलादि विज्ञान के भले प्रकार समझे विना आयुर्वेदीय वैकारिकी में प्रवेश नहीं हो सकता जिसके लिए पृथक् ग्रन्थ की योजना की जा रही है । वैकारिकी से सम्बद्ध प्रमुख-प्रमुख विषयों का इसमें समावेश किया गया है। मुझ पर मेरे गुरुओं की सदा कृपा रही है। उन्हीं के आशीर्वाद से ही मैं आयुर्वेदीय वाङ्मय की सेवाकरने के सत्प्रयत्न में लग सका हूँ। इस ग्रन्थ के लिए अपना अमूल्य समय निकाल कर परम आदरणीय विद्वज्जन-शिरोमणि श्री डा० प्राणजीवन माणेकलाल मेहता एम. डी. एम. एस, एफ. सी. पी. एस, एफ. आई. सी. एस. डाइरेक्टर सैण्ट्रल इन्स्टीच्यूट आफ रिसर्च इन इण्डाइजीनस सिस्टम्स आफ मैडीसिन जामनगर ने जो प्राक्कथन लिखने को कृपा दिखलाई है उसके लिए मैं उनका बहुत कृतज्ञ हूँ। डा० मेहता की आयुर्वेद भक्ति और विद्वत्ता का मूर्तरूप हमें उनके द्वारा सम्पादित चरक संहिता के ६ विशाल ग्रन्थ खण्डों में उपलब्ध होता है। आज भी वे सबल हृदय और सुपुष्ट बुद्धि के साथ थोड़ी सी हड्डियों का हलका शरीर लेकर आयुर्वेदानुसन्धान के पुण्यतम कार्य का सञ्चालन कर रहे हैं। उनकी तपश्चर्या ने बड़े-बड़े आयुर्वेद विरोधियों को इसका सच्चा भक्त बना दिया है। वे इस समय एक स्फूर्ति के रूप में विद्यमान हैं। उनके चरणों में बैठकर जिन्हें भी आयुर्वेदोद्धार का अवसर मिला है वे कृतार्थ हो गये हैं। आज जामनगर जो आयुर्वेद जगत् में एक गौरवास्पद स्थान ग्रहण करता जा रहा है वह इसी तपस्वी का प्रभाव और प्रसाद है। पूज्य डा० घाणेकरजी के प्रति अपना आभार प्रदर्शित करने के लिए मेरा शब्दकोश बहुत ही छोटा पड़ गया है। उनकी कृपा पग-पग पर प्रकट होती रही है। उनका आशीर्वाद मेरा सबसे बड़ा सम्बल है। आदरणीय डा० शिवनाथ खन्ना एम. बी. बी. एस., डी. पी. एच. आयुर्वेद कालेज में पैथालोजी के रीडर हैं। आपकी विद्वत्ता अप्रतिम है । आपने कृपा करके अपने व्यस्त जीवन में से समय निकाल कर जो प्रस्तावना लिखकर दी है उसके लिए मैं आपका हृदय से धन्यवाद करता हूँ। प्रस्तावना आपके आयुर्वेदीय पाण्डित्य की प्रत्यक्ष प्रकाशिका है। आधुनिक ज्ञान के भण्डार गुरुदेव ने १७ पृष्ठीय प्रस्तावना देकर मुझे आभार से नत कर दिया है। इस ग्रन्थ के लेखन में चित्रों का संग्रह करने में तथा अन्य निर्देश ग्रहण करने में मुझे अनेकों देशी तथा विदेशी ग्रन्थों की प्रत्यक्ष सहायता लेनी पड़ी है। इनके ख्यातनामा लेखकों और सुयोग्य वैज्ञानिकों की सूची ग्रन्थ के अन्त में प्रकाशित की जा रही है। इन सबके प्रति मैं पूर्णतया कृतज्ञ हूँ। जिन ग्रन्थों का उपयोग मुझे करना पड़ा है उनके सौजन्यमूर्ति प्रकाशकों के प्रति भी में अपना आभार सादर प्रकट करता हूं। काशी के सुप्रसिद्ध चिकित्सक आदरणीय बन्धु आयुर्वेदाचार्य पं० श्री गङ्गासहाय ए. एम. एस. प्राध्यापक, आयुर्वेद कालेज काशी हिन्दूविश्वविद्यालय, जिनके मौलिक सुझावों ने इस ग्रन्थ की कायापलट कर दी है, के प्रति भी मैं सादर आभार प्रकट करता हूँ। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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