SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहास २४७ द्वारा नियन्त्रित होता है । पोषग्रन्थिजन्य वामनता ( pituitary dwarfism ) में भी यह रोग देखा जाता है । श्लेषाभ विहास (Mucoid Degeneration ) इस विह्रास की प्राप्ति संयोजी ऊतिओं और अधिच्छदीय ऊति ( epithelial tissue ) में होती है । जो ऊति इस विहास से प्रभावित होती है उससे पहले रचनाविहीन structureless ) पदार्थ बनता है वह फिर आर्द्र होकर श्लेष्मिसदृश पदार्थ में बदल जाता है इसे 'कूट श्लेष्मि' ( pseudo mucin ) कहते हैं । इस नाम का कारण यह है कि यह तरल श्लेष्मि ( muoin ) की भाँति शुक्तिकाम्ल द्वारा निस्सादित नहीं होता . यह विहास जिन कोशाओं में होता है. उनकी पूर्णतः मृत्यु कर देता है । कोशा के अन्दर सर्वप्रथम उसका कोशारस बढ़ जाता है । जो शनैः शनैः समस्त कोशा को परिव्याप्त कर लेता है । कोष्ठ (सिट) का निर्माण इसी विहास के कारण देखा जाता है । संयोजी ऊतियों में कास्थि में यह देखा जाता है । जानुसन्धि की अर्द्धचन्द्राकार कास्थियों में चोट लगने से कोष्ठ बनता हुआ देखा जाता है । संयोजी ऊतियों में होने वाले अर्बुदों में भी यह विहास सामान्यतया देखा जाता है । इसी कारण तन्तु-अर्बुद ( fibroma ) तन्तु-ग्रन्थ्यार्बुद ( fibroadenoma ) का भी कारण यही है । जिनमें कोष्ठ प्रकट होते हैं । अधिच्छदीय ऊतियों में विशेष करके आमाशय, आन्त्र, या वक्ष के कर्कटार्बुदों ( cancers ) में या लाला ग्रन्थियों के कुछ अर्बुदों में भी यह विहास पाया जाता है | अर्बुद का कोशीय भाग ( cellular part of the tumour ) श्लेष्मा में बदल जाता है इन्हें 'श्लेषाभ अध्यर्बुद' ( colloid carcinomata ) कहते हैं । यदि इस विहास को अण्वीक्ष द्वारा प्रारम्भ से ही देखा जावे तो ज्ञात होगा कि सर्वप्रथम कोशा-रस में श्लेष्माभविन्दुकाओं ( mucoid globules ) की उपस्थिति गोचर होती है । वे विन्दुक बढ़ते और एक दूसरे मिलते हुए चले जाते हैं । कोशा की न्यष्ठीलाएँ एक ओर सरकती जाती हैं और कोशा एक अंगूठी ( signet ring ) की आकृति वाली बन जाती है । अन्त में कोशा भर जाती है तथा कूट श्लेष्मि स्वतन्त्र हो जाती है । यह विहास संयोजी ऊतियों में बहुत होता है । बहुत काल तक शोथग्रस्त रहे हुए योजी ऊतियों वाले अंगों में इस विहास के कारण अङ्ग का एक भाग उठ आता है । इसका एक उदाहरण नासापूर्वंगक ( nasal polypus ) है । काचरविहास (Hyaline Degeneration ) यह विह्रास विशेषतया संयोजी ऊतियों में पाया जाता है। जब किसी ऊति की मृत्यु हो जाती है तो फिर उसमें जो एक भौतिक परिवर्तन ( physical For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy