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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ विकृतिविज्ञान साधारण यकृत् के खण्ड ( lobes ) ३ भागों में विभक्त रहते हैं। इनमें प्रथम को परिसरीय भाग कहते हैं। इसका अभिसिञ्चन केशिकाभाजि या प्रतिहारिणीसिरा ( portal vein) के द्वारा होता है। मद्य या अतियोग में स्नेहों का सेवन करने से जो विह्रास होता है वह केशिकाभाजि सिरा द्वारा प्रारम्भ होता है इसी से वह परिसर से केन्द्र की ओर देखा जाता है । भास्वरी विषयुक्त आहार लेने पर भी विकृति परिसर से ही प्रारम्भ होती है। द्वितीय को केन्द्रिय प्रदेश कहते हैं। जहाँ याकृत्सिरा अभिसिञ्चन करती है। यकृत् की निश्चेष्ट अधिरक्तता की अवस्था कालिक हृद्भेद ( chronic heart failure ) के कारण हुआ करती है। उसमें भी विनाश वा विह्रास के चिह्न पहले याकृतिसरा में अवरोध होने से केन्द्र में ही प्रकट होते हैं। वहाँ से वे परिसर की ओर जाते हैं। केन्द्रिय सिरा के विषाक्त होने के दो कारण हैं। प्रथम जारक (oxygen) का अभाव और दूसरे सिरा के रक्त में स्थित विषाक्त चयापचयिक उत्पाद (toxic metabolic products ) का सञ्चय होना है। क्लोरोफार्म के विप में भी विक्षत केन्द्र से ही प्रारम्भ होते हैं। __ तृतीय को मध्यवर्ती प्रदेश कहते हैं। इसे याकृत् धमनी सींचा करती है। इसमें एक नाभ्य वा स्थानिक विहास मिला करता है। इसके विक्षत किसी प्रदेश विशेष में न होकर इतस्ततः छितरे रहते हैं। पहास मांसपेशी का स्नैहिक विह्रास ( Fatty Degeneration of the Muscles) पेशी चाहे रेखाङ्कित (striated) हो या अरेखाङ्कित, स्नैहिक विहास दोनों में मिल सकता है। पेशी के कोशाओं में पेशीतन्तु के स्थान पर स्नेहविन्दु एकत्र होकर उसे नष्ट कर देते हैं । धमनियों की अनैच्छिक पेशियों में भी विह्रास मिला करता है प्रसूत्युत्तर कालीन गर्भाशय में भी उसके स्वरूपहास (involution ) के साथ साथ स्नैहिक विहास मिल सकता है। रेखाङ्कित पेशी की रेखाएँ नष्ट हो जाती हैं । कोशारस में स्नेहविन्दु मिलते हैं जो पहले सूक्ष्म रहते हैं और बाद में मिलकर बड़े हो जाते हैं। कभी पेशीतन्तु के किनारे किनारे कणों की एक पंक्ति बन जाती है । तन्तु आगे चलकर अत्यन्त भिदुर होने से नष्ट हो जाते हैं। जिन पेशियों में अंगघात ( paralysis ) हो जाता है उनमें भी स्नैहिक विह्रास मिल सकता है। पेशी के उत्तरोत्तर होने वाले अपोषक्षय ( progressive muscular atrophy ) में भी यह विह्रास देखा जाता है । कूट परमचयिक पेशीय अपोषक्षय (pseudo hypertrophic muscular atrophy ) में भी यह देखा जाता है। रोहिणी, पुंजगोलाण्विक रोग ( staphylococcal diseases ), रक्त के गम्भीर रोग एवं भास्वर विष से पीडित व्यक्तियों की पेशियों में स्नैहिक विहास मिल सकता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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