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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३६ विकृतिविज्ञान ( ६ ) व्यूहाण्वीय नाश या व्रणन (Molecular Necrosis or Ulceration ) शरीर धरातल के निर्माण में भाग लेने वाली ऊतियों-त्वचा और कला में होने वाली यह ऊतिमृत्यु है । इसका प्रधान हेतु बाह्य उपसर्ग होता है । उपसर्ग के पश्चात् किसी अंग पर सतत पीड़न होना भी व्रणकारक हुआ करता है । निरन्तर शैय्या पर लेटे रहने से शरीर के भार का जब पीडन दुर्बल रोगी के निकले हुए भागों पर पड़ता है तो शैय्यात्रण ( bed - sores ) का होना उसका एक उदाहरण है । वाहिनी विस्फार ( aneurysm ) वा अर्बुद ( tumour ) के कारण भी एक ही स्थान पर पीड़न होने से व्रण हो सकता है । नेत्र में बाह्य वस्तु के पहुँचने से स्वच्छक व्रण ( corneal ulcer ) बन जाता है । कभी कभी निश्चेतनक्रिया ( anaesthesia ) द्वारा संवेदि चेता ( sensory nerve ) पर आघात होने से भी व्रणन होता है । जब यह कहीं हो जाता है तो वहाँ प्रायः पोषणत्रण ( trophic ulcer ) बन जाया करते हैं । मारात्मक वा दुष्ट अर्बुदों ( malignant tumours ) के कारण दुष्ट व्रण उत्पन्न हुआ करते हैं । ये सभी व्यूहाण्वीय ऊतिमृत्यु के सूचक हैं । I 49ers Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8 चतुर्थ अध्याय विहास ( Degeneration ) यह भी ऊति विशेष पर होने वाली क्रिया है । जब किसी ऊति का विहास कहा है तो उसका अभिप्राय ऊतियों का उस ऊति में परिवर्तन समझना चाहिए । उदाहरणार्थ स्नैहिक विहास कहने से किसी ऊति विशेष में स्नेह की उपस्थिति है ऐसा बोध होता है स्नेह के अभाव का नहीं। आगे इस विषय का नातिसंक्षेप विस्तार पूर्वकवर्णन किया जाता है । For Private and Personal Use Only मेघाभ या मेघसम शोथ ( Cloudy swelling ) इसे कणदार, शुक्लाभ या जीवितक ( parenchymatous ) विहास कहते हैं । ज्वर वा विषमयता ( toxaemia ) जिन रोगों के कारण मानवशरीर में फैलती है उन्हीं से यह विहास भी होता है । श्लैष्मिककला में जो पैनस व्रणशोथ ( catarrhal_inflammation) होता है वह इसका स्थानिक उदाहरण है । रक्त में विषैले पदार्थ की उपस्थिति भी इसकी मूलक हो सकती है तभी संखिया भास्वर ( फास्फोरस ) या खनिज अम्लों की उपस्थिति में मेघाभगण्ड प्रायः मिलता
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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