SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव २२७ जीवितक वातनाडीपाक का दूसरा नाम वैषिक वातनाडीपाक ( toxic neuritis ) भी है । यद्यपि हमने वातनाडियों का पाक ऐसा कहा है पर जब हम इसकी विकृति का अध्ययन करते हैं तो व्रणशोथ के स्थान पर विह्रास अधिक मिलता है और विहास तथा व्रणशोथ का एक मिश्रित चित्र सन्मुख आता है । अन्तरालित वातनाडीपाक प्रायः व्रणशोथात्मक और जीवितक वातनाडीपाक प्रायः विहासात्मक होता है । अब हम इनका थोड़ा वर्णन करते हैं । अन्तरालित वातनाडीपाक - विभिन्न प्रक्षोभक मिलकर वातनाडी ( चेता ) में व्रणशोथ उत्पन्न कर सकते हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है सर्दी का लग जाना, निपीड जैसे बैसाखी ( crutch ) द्वारा किसी अंग का दब जाना तथा उपसर्ग । उपसर्ग समीपस्थ किसी व्रणशोथयुक्त नाभि (फोकस) से आता है । सन्धिपाक के कारण यह देखा जा सकता है । उपसर्ग के कारण स्थानिक वातनाडी में पाक प्रारम्भ हो जा सकता है। । जब कोई वातनाडी विगोपित ( exposed ) हो जाती है तो वह सूज जाती है लाल हो जाती है और उसकी गाढता ( consistency ) मृदुल हो जाती है अण्वीक्षण करने पर वातनाडीतन्तु से उसकी संयोजी ऊति पृथक् हो जाती है उसमें व्रणशोथ के सामान्य चिह्न उदित हो जाते हैं अर्थात् वाहिनियों का विस्फारण, स्फाय ( oedema ), गोलकोशाओं की भरमार होने लगती है और आगे चलकर नवीन तान्तव ऊति बनने लगती है । जो स्राव वहाँ निकलता है उसके पीडन के कारण तथा प्रक्षोभ से वातनाडीतन्तुओं में विह्रास होने लगता है परन्तु अक्षरम्भ ज्यों के त्यों रहते हैं इस कारण उनकी क्रिया के साथ प्रायः किसी प्रकार की गड़बड़ी देखने को नहीं मिलती । साथ ही चेतावरण (neurilemma ) में कोशाओं का प्रगुणन प्रारम्भ हो जाता है जो कदाचित् भक्षणकार्य ( phagocytic action ) करता है । जीवितक वातनाडीपाक — जैसा पूर्व ही स्पष्ट कर दिया गया है यह विहासात्मक व्याधि जितनी है उतनी व्रणशोथात्मक नहीं है इसे वैश्लर बहुनाडीपाक न कहकर बहुवात नाडी रोग ( multiple neuropathy ) कहना अधिक युक्त ठहराता है । उसी प्रकार मद्य तथा सीस विष द्वारा उत्पन्न प्रमस्तिष्कीय विक्षतों को भी वह मस्तिष्क पाक न कहकर मस्तिष्करोग ( encephalopathy ) मात्र कहना चाहता है । जीवितकीय वातनाडीपाक के विहासात्मक विक्षतों को १ - विष ( रोहिणीविष ), २- वाह्यविष ( सोस, मल्ल, मद्य ), तथा ३ - जीवति ख ( Vitamin B. ) उत्पन्न किया करते हैं । आधुनिक खोजों ने यह भी प्रकट किया है कि मद्य, मल्ल या प्रमेह में जो नाडीपाक देखे जाते हैं उनका भी कारण अजीवतिक्तिता ( avitaminosis ) ही है । अंग्ले का कथन है कि बहुनाडीपाक ( polyneuritis ) जब पोषणजन्य होता है तब मस्तिष्कोद में जीवतिक्ति ख की मात्रा कम तथा मूत्र में सबसे कम देखी जाती है जैसा कि वातबलासकज्वर ( Beri - Beri ) में देखा जाता है । I For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy