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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव १७६ परिवर्तन आघात के अनुपात में ही देखे जाते हैं यदि वातनाडी (चेतातन्तु) पूर्णतः काट डाली गयी है तो कोई परिवर्तन नहीं मिलते पर यदि आघात सौम्यस्वरूप का हुआ तो वर्णहासादि परिवर्तन हलके और थोड़ी देर रहने वाले ही देखे जाते हैं। ___ उपर जिस विहास का वर्णन किया गया है उससे विभिन्न दो प्रकार के और परिवर्तन मिलते हैं । पहले प्रकार का परिवर्तन संवेदि वातनाडियों के पश्चमूल प्रगण्डों ( posterior root ganglia of the sensory nerves ) के केन्द्रिय तन्तुओं के काटने से यह मिलता है उसके अक्ष-रम्भ में कोई विहास दृष्टिगोचर नहीं होता।यह स्मरण रखना चाहिए कि यदि उन्हीं नाडियों के पश्चमूल प्रगण्डों के परिणाही तन्तुओं ( peripheral fibres ) को काटा जाता है तो अक्ष-रम्भ में विह्रास अवश्य मिलता है । दूसरे प्रकार का परिवर्तन उन चेतैकों में होता है जो केन्द्रिय वातनाडी संस्थान के बाहर नहीं आते इन कोशाओं में विहास होने पर वे पूर्णतः नष्ट होकर विलुप्त हो जाते हैं तथा वहाँ पुनर्जनन की कोई क्रिया नहीं देखी जाती है। ऊपर जितने प्रकार के भी कोशीय परिवर्तन हमने बतलाये हैं वे केवल किसी वातनाडी के आघात के कारण ही नहीं उत्पन्न होते अपि तु उनकी उत्पत्ति में मद्य आदि अन्य कारक भी कारणभूत हो सकते हैं। सेन्द्रिय या निरिन्द्रिय विषों के द्वारा चाहे वे बहिर्भूत हों या अन्तर्भूत वर्णहास, कोशा की काया में रसधानी निर्माण ( vacuolation ) तथा कोशान्यष्टि का उत्केन्द्रण आदि नाशक क्रियाएँ उत्पन्न हो सकती हैं । इस प्रकार के विहास का प्रत्यक्ष दर्शन हमें सुषुम्नाधूसरद्रव्यपाक ( poliomyelitis), सर्वाङ्गघात (general paralysis ) तथा अन्य व्रणशोथात्मक अवस्थाओं में देखने को मिलता है । जहां वातनाडियों का प्रत्यक्ष आघात न होकर अप्रत्यक्षतया विविध अभिकर्ताओं (agent) के द्वारा यह संकट आ उपस्थित होता है। यही नहीं अत्यधिक परिश्रम करने से या अन्य प्रकार से उत्पन्न थकान (exhaustion ) के कारण भी वातनाडियों में विहास और विहासात्मक परिवर्तन देखे जा सकते हैं । जब यह विह्रास अत्यन्त भीषण रूप धारण कर लेता है तो फिर जो घटना ( phenomenon ) घटती है उसे चेतैकभक्षण ( neuronophagia) कहते हैं इसमें कोशा के चारों ओर भक्षिकोशा (phagocytes ) एकत्र हो जाते हैं जो यहाँ उपग्रह ( satellites ) कह कर पुकारे जाते हैं। ये उपग्रह चेतैकों ( नाडीकन्दों) के विघटन में सहायता करते हैं। ये कोशा अन्तरालित उतियों के २ घटकों अणुश्लेष ( microglia. ) और अल्पचेतालोमश्लेष (oligodendroglia) के द्वारा बनते हैं। रंगायिकपरिवर्तन (pigmentary changes )-नाडीकोशाओं में रंगायिक परिवर्तन प्रायः देखे जाते हैं मस्तिष्ककाण्ड ( brain stem ) तथा मस्तिष्क मूलपिण्डद्वय ( basal ganglia ) में कुछ कोशासमूहों में कालि ( melanin ) नामक रंगा बहुत मात्रा में एकत्र मिलता है श्यामपत्रिका ( substantia nigra) में यह काला रंगा बहुलता से पाया जाता है । वृद्धों और प्रौढों की वातनाडियों में For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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