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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ विकृतिविज्ञान रक्तस्राव हो जाता है और तब वे सशोण बीजवाहिनी (Haemato Salpinx ) कहलाती है। उस समय रोगी की दशा अत्यन्त शोचनीय हो जाती है और शस्त्रकर्म परमावश्यक हो जाता है। जीर्ण बीजवाहिनीपाक का उपशम तन्तूत्कर्ष के द्वारा होता है जिसके कारण वाहिनी प्राचीरव्याकृष्ट (distorted ) और स्थूलित हो जाती है। श्लेष्मलकला के कुछ भाग तान्तवप्राचीर में खिंच जाते हैं जिसके कारण गाँठ गंठीला स्थौल्यरूप (nodular thickening of adenomatous appearance) देखा जा सकता है जैसा कि जीर्ण पित्ताशयपाक में पित्ताशय की प्राचीर में मिलता है। यह बीजवाहिनी के उस भाग में होता है जहाँ वह सर्वाधिक संकुचित होती है ( isthmic part ) उसके पेशीय भाग का भी स्थूलन हो जाता है जिसके कारण इसमें अनेक अधिच्छदीय कानाले (epithelial canals ) बनने लगती हैं इसका मुख्य वाहिनी कानाल से कोई सम्बन्ध नहीं रहता और ऐसा लगता है कि मानो यह एक नववृद्धि ( neoplasm) हो। इस अवस्था को संयोगस्थलीय गण्ड बीजवाहिनीपाक (Salpingitis isthumica nodosa) कहते हैं । यह प्रायशः उष्णवातिक होता है परन्तु यक्ष्माजन्य या अनुष्णवातीय भी मिल सकता है। पूयजनक बीजवाहिनीपाक (Pyogenic Salpingitis) जो अनुष्णवातीय होता है उसमें श्लेष्मलकला को उतनी हानि नहीं पहुँचती बल्कि वह वाहिनी प्राचीर में कोशोतिपाक ( cellulitis ) कर देता है। अण्वीक्षण पर व्रणशोथात्मक परिवर्तन पेशीय भाग में अधिक मिलते हैं न कि श्लेष्मलकला में इसलिए इसके कारण अधिक आघात नहीं होता और न अधिक तन्तूत्कर्ष ही होता है । गर्भाशय के पाक बालिकाओं की अपेक्षा तरुणियों में, गर्भाशय पर व्रणशोथ का प्रभाव होना एक सर्वसामान्य घटना है । व्रणशोथ के स्थान विशेष पर प्रभाव डालने से उसके भिन्न-भिन्न नाम हो जाते हैं। जब पाक गर्भाशय ग्रीवा में होता है तो उसे प्रैवपाक (Cervicitis) कहते हैं, जब गर्भाशय के अन्तच्छद में होता है तो उसे गर्भाशयान्तःपाक या अन्तःगर्भाशयपाक (Endometritis) कहते हैं; जब पाकस्य स्थान गर्भाशय पेशी होती है तो उसे गर्भाशय पेशीयपाक ( Metritis) कहते हैं; जब गर्भाशय प्राचीर के बाहरस्थित अबद्ध योजी ऊति ( loose connective tissue ) में पाक होता है तो उसे परागर्भाशयपाक ( Parametritis) कहते हैं; तथा जब पाक गर्भाशय को ढंकने वाली उदरच्छदकला में होता है तो उसे परिगर्भाशयपाक ( Perimetritis ) कहते। गर्भाशय के जिन विभिन्न पाकों का नामोल्लेख किया गया है वे तीव्र और जीर्ण दोनों प्रकार के हुआ करते हैं। तीव्र उपसर्गों का कारण प्रसवकालीन दूषकता या गर्भस्रावोपरान्त होने वाली दूषकता होती है। जीर्ण उपसर्गों का प्रमुख हेतु उष्णवातीय गोलाणु होता है तथा जिसे जीर्ण गर्भाशयान्तः पाक कहा जाता है वह कई विद्वानों की दृष्टि में उपसर्गजनित नहीं होता। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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