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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव १२३ जुलता होता है। इस प्रकार यकृत् में पीतवर्ण की अनेक ग्रन्थिकाएं (nodules) मिलती हैं जिनके बीच का भाग विस्फारित केशालों के कारण लाल कणन ऊतिमय पट्टियों से भरा रहता है जिनमें नई असंख्य पित्त प्रणालिकाएँ स्पष्टतः देखी जाती है। रुग्ण यकृत् क्षेत्रों के समीप ही स्वस्थ क्षेत्र मिलते हैं। यह विकार नष्ट किया जा सकता है यदि ऊतिमारक हेतु अधिक काल तक चलता नहीं रहता। यह व्याधि महीनों और वर्षों चल सकती है कभी रोगी ठीक हो जाता है और कभी अधिक बीमार । रोग दूर होने पर जो यकृत्कोशा स्वस्थावस्था में अवशिष्ट रह जाते हैं उनमें अत्यधिक पुनर्जनक परमचय ( regenerative hyperplasia ) देखा जाता है। इस रोपण क्रिया ( healing process ) से यकृत् खुरदरा और गाँठगँठीला ( nodular ) हो जाता है, जिसमें तान्तव उति की बड़ी-बड़ी-पट्टियों के मध्य यकृत्-ऊति के द्वीप बसे हुए मिलते हैं । इसे देखने से ऐसा मालूम पड़ता है कि बहुखण्डीय यकृद्दाल्युत्कर्ष (multilobular cirrhosis ) की ही रूक्षाकृति ( coarse form ) यह हो। इसे वैषिक यकृदाल्युत्कर्ष ( toxic cirrhosis ) कहा जाता है (मैलौरी)। इसका दूसरा नाम बग्रन्थिक परमचय ( multiple nodular hyperplasia) दिया गया है (माडचन्द)। इन परमचयित ग्रन्थिकों में से कुछ जो उपरिष्ठ धरातल पर होते हैं यकृत् के मुख्यपिण्ड से पृथक से लगते हैं और उन पर अलग प्रावर ( capsule ) चढ़ा होता है । इनको याकृत् ग्रन्थ्यर्बुद ( hepatic adenoma) भी कहा जाता है परन्तु वास्तव में वे अर्बुद नहीं होते, उन्हें हम पुनर्जननमूलक नाभ्य परमचय क्षेत्र ( areas of focal hyperplasia of regenerative origin) कह सकते हैं। यह भी सन्देहास्पद है कि यकृत् के अन्दर वास्तविक प्रन्थि-अर्बुद कभी मिलता हो । जीर्ण वैषिक यकृत्पाक ( chronic toxic hepatitis)-वैषिक यकृद्दाल्युस्कर्ष के साथ साथ ही कुछ अन्य ऐसी अवस्थाओं का भी समूह है जिन्हें हम यकृद्दाल्युत्कर्षों (cirrhoses) के नाम से पुकारते हैं जिनमें अहैतुक जीर्णतन्तूत्कर्ष तथा यकृत्कोशाओं की मन्थर गति से मृत्यु या अपुष्टि (अपोषक्षय) निरन्तर चलती रहती है । अँगरेजी में सिरहोसिस का अर्थ यकृत् वर्णान्तर मात्र था परन्तु आजकल इसका अर्थ प्रसर तन्तूत्कर्ष ( diffuse fibrosis) लिया जाता है उसी भाव में यकृद्दाल्युत्कर्ष चल पड़ा है। ये संरचना की दृष्टि से दो प्रकार के होते हैं एक को केशिकाभाजि यकृद्दाल्युत्कर्ष ( portal cirrhosis) और दूसरा पैत्तिक यकृद्दाल्युत्कर्ष ( biliary cirrhosis )। अब हम इन दोनों का वर्णन यहाँ पर विस्तारशः करेंगे। केशिकाभाजि यकृद्दाल्युत्कर्ष ( Portal Cirrhosis) इसके अनेक नाम प्रसिद्ध हैं जिनमें कुछ निम्नाङ्कित हैं :१. बहुखण्डीय यकृहाल्युत्कर्ष ( multilobular sirrhosis) २. अपोषक्षयजन्य यकृद्दाल्युत्कर्ष ( atrophic cirrhosis) For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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