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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव मिलता है यहां रक्तस्रावी शोफ ( haemorrhagic oedema ) हो जाता है । यहां उपसर्ग का कारण शोणांशिक मालागोलाणु होता है। रक्तयुक्त उत्स्यन्द अन्तिम अवस्था तक सपूय नहीं होता हुआ देखा जाता। इसलिए जब ऐसे फुफ्फुस को काटा जाता है तो उसमें से बहुत सा रक्त टपक पड़ता है और संघनन बहुत दूर दूर पर मिलता है। छोटी छोटी श्वासनालों की प्राचीरों में विद्रधि बन जाती हैं और उनकी रचना नष्ट हो जाती है। यदि रोगी जीवित रहा तो वहां तन्तूत्कर्ष हो जाता है। प्रायशः रोगी प्रारम्भिक अवस्था में ही इस रोग से कालकवलित हो जाता है। यदि वह जीवित रहा तो आगे चल कर खण्डिकीय फुफ्फुसपाक का युगपच्चलित रूप ( confluent form of broncho-pneumonia) प्रकट होता है जिसमें सब सिध्म एक दूसरे में मिल कर फुफ्फुस संघनन का आभास कर देते हैं तथा जो फुफ्फुस विद्रधि या पूयोरस् को जन्म देता है यह तो हुआ शोणांशन मालागोलाणुजन्य श्वसनक का वर्णन। परन्तु शोणहरितक मालागोलाणुओं (streptococcus viridans ) द्वारा होने वाले श्वसनक में विकृति फुफ्फुस गोलाणुज श्वसनक के समान रहती है और रोग का स्वरूप कम गम्भीर रहता है। प्रतिश्याय शोणप्रियाणुजन्य श्वसनक शुद्ध स्वरूप का प्रायः नहीं मिलता यह सदैव फुफ्फुसगोलाणुओं या मालागोलाणुओं के साथ मिलता है। जब इन्फ्लुएंजा या प्रतिश्याय के लक्षणों के साथ श्वसनक होता है तो उसका प्रारम्भ कण्ठनाड़ीपाक से होता है जहां से पाक श्वासनाल और श्वसनिकाओं तक जाता है शुष्क प्रक्षोभकारक कास के साथ सन्धियों और पेशियों में शूल के साथ इसका प्रारम्भ होता है। वायुमार्गों के पचमल अधिच्छद का नाश होने लगता है श्वसनिकाओं की प्राचीरें टूट जाती हैं जिनकी पूर्ति तन्तूत्कर्ष से होती है ये तन्तत्कर्ष के स्थान ही फिर आगे चल कर उरःक्षत वा यक्ष्मा के उत्पन्न करने के केन्द्र बन जाते हैं। ग्रीन के शब्दों की ओर ध्यान दीजिए A dry irritating cough is usual with fever and generalised pains in the joints, and muscles. In larger air passages there is destruction of the wall, this is later repaired by fibrosis and may form a starting point of bronchiectasis. अब तनिक चरक के निम्न सूत्रों की ओर दृष्टिपात कीजिए: प्रतिश्यायादथो कासः कासात् संजायते क्षयः । क्षयो रोगस्य हेतुत्वे शोषस्याप्युपजायते ॥ प्रतिश्याय से कास कास से क्षय और क्षय से शोष उत्पन्न होता है यह क्यों सम्पन्न होता है इसे जानने के लिए विद्वानों के चरणों में बैठना पड़ेगा। प्रतिश्यायात्मक श्वसनक ( Influenzal Pneumonia) में व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया वायुकोशाओं की अपेक्षा परिश्वासनालीय अन्तरालित ऊति (peribronchial interstitial tissue ) में अधिक स्थानीभूत रहती है। वायुकोशों में For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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