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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव खण्डीय फुफ्फुसपाक या कर्कटक सन्निपात फुफ्फुस गोलाणु (pneumococcus) नामक जीवाणु द्वारा उत्पन्न व्याधि है। उपसर्गकारी जीवाणु वायुमार्ग द्वारा फुफ्फुसों में पहुंचता है और फुफ्फुस के परिणाह पर पश्चपार्श्व ( dorso lateral ) भाग में एक सिध्म ( spot ) बनाकर वहां से एक वायुकोश से दूसरे में उपसर्ग करता चलता है। विकृति शारीर की दृष्टि से कर्कटक सन्निपात की निम्न चार अवस्थाएं होती हैं। १. अधिरक्तावस्था ( stage of congestion ) २. लालसघनावस्था ( stage of red hepatisation) ३. धूसरसघनावस्था ( stage of grey hepatisation ) ४. उपशमावस्था ( stage of resolution ) अधिरक्तावस्था-यह कर्कटक सन्निपात की सर्वप्रथम अवस्था है जिसका प्रारम्भ शीतानुभूति ( rigor ) से होता है। इस अवस्था में फुफ्फुसीय वायु कोशाओं की प्राचीरों में स्थित केशाल विस्फारित हो जाते हैं और उनसे छन छन कर शुक्लियुक्त ( albuminous ) तरल वायुकोशा में भर जाता है। वायुकोशा में अनेक सितकोशा भी पहुंच जाते हैं वहीं पर बहुत बड़ी संख्या में फुफ्फुस गोलाणु भी रहते हैं। ये गोलाणु कोशाबाह्य ( extracellular ) होते हैं । इस सब के कारण अधिरक्ततायुक्त भाग का भार बढ़ जाता है उसकी प्रत्यस्थता (elasticity ) नष्ट हो जाती है, उसके पदार्थ में बुबुद ध्वनि ( Grepitation) की कमी तथा वह अपेक्षाकृत भिदुर (friable ) हो जाता है। उसके धरातल को दबाने से गर्त पड़ जाता है। काटने पर उसमें से झागदार आरक्त (reddish) पिच्छिल (tenacious) तरल निकलता है। इस तरल में तन्त्विजन, लालकण और जीवाणु होते हैं। यह अवस्था लगभग १ दिन तक बनी रहती है। लाल सघनावस्था या लाल यकृतीभवन की अवस्था-यह द्वितीयावस्था है जो दूसरे या तीसरे दिन से प्रारम्भ हो जाती है। इस अवस्था में प्रथमावस्था से आगे का कार्य होता है। विस्फारित केशालों की प्राचीरों से छन छन कर रक्त के लाल कण और तन्त्विमत् तरल वायुकोशा में एकत्र होने लगते हैं। कुछ केशाल विदीर्ण हो जाते हैं जिनसे रक्त भी आकर भर जाता है। वायुकोशाओं में तन्त्वि एकत्र होकर जालिका ( reticulum ) बना लेती है, यह जालिका वायुकोष के परिणाह पर बहुत सघन होती है जिसके जालों में लाल कग, सितकोशा तथा विशल्कित अधिच्छदीय कोशा उलझे रहते हैं। सितकोशाओं में बहुन्यष्टियों की अधिकता रहती है। यह सितकोशाओं की पहली लहर होती है। फुफ्फुस गोलाणु की उपस्थिति भी बहुतों में मिलती है पर वह होता कोशाबाह्य ( extracellular ) ही है। इस अवस्था में फुफ्फुस का भार अपने स्वाभाविक भार ( २५० माषा) से बढ़ कर चारगुना (१००० ग्राम) हो जाता है उसका आकार भी बहुत बढ़ जाता हैं जिसके कारण For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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