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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकृतिविज्ञान-पृष्ठ ४११ (क) सन्निपात | सन्धिक तन्द्रिक प्रलाप चित्तविभ्रम जिहक कणिक रुग्दाह अन्तक भुग्मनेत्र लक्षण तीव्र ज्वर के साथ शरीर की पमुख लक्षण सन्धियों में शोध तीन वर के साथ तीन ज्वर के साथ अत्यधिक तन्द्रा प्रलाप बहुलता तथा अत्यधिक वेदना तीव्र ज्वर के सार गायन, नर्तन हास्य और प्रला तीव्र ज्वर के तीव्र ज्वर के साथ साथ कर्णमूलजिला कठिन कण्टकों ग्रन्धि में शोथ से आवृत और और वेदना बाहुल्य तीब्र ज्वर के साथ तीव्र ज्वर के साथ अत्यधिक दाह, निरन्तर शिरविधूहनुमन्या और कंठ नन या शिरकम्प | तीन ज्वर के साथ वक्रदृष्टिता बहलता उसके कारण मकता में अतिव्यथा दोषोत्वणता वातकफ बातकफ वातकफ वातकफ बातकफ बातकफ पित्त पित्त वातपित्त तृष्णा +++++ ++++++ दाह ++ +++ + ++++++ श्वास +++++ +++++++++++ +++++ ++ +++++ कास ++++++ ++++ ++ ++++ हिका ++++++ प्रलाप ++++++++++++ +++++++++++ + ++++++ कम्प ++++++ + + +++++ तन्द्रा + निद्रा जागरण श्रम कुम +++++ +++ +++ +++++ वमन ++ अतीसार +++++ मद ++++ +++++ +++++++++++ +++ मूळ विकलता +++ +++++ ++ बेदना +++++ +++ + + + + +++ संज्ञानाश +++++ आध्मान बलक्षय ++++ ताप ++++ ++ ++++++ +++++ +++++ +++ शैत्य अङ्गशैथिल्य कण्ठरुक ++++ ++++ ++++++ र-श्यामा स-शूकावृत ना-कठिना ++++ ++++ ++++ ++++ कर्णशूल ++++ ++++++ ++ ++++ विकृतनेत्र +++++ ++++++ जडता प्रस्वेद + + प्रसेक +++ अग्निमान्ध For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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