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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्नि वैकारिकी ६७५ २. तन्द्रानिद्रागौरवोत्क्लेशसादी वेगाशङ्की सृष्टविटकोऽपि भूयः। शुक्लं सान्द्रं श्लेष्मणाश्लेष्मयुक्तं भक्तद्वेषी निःस्वनं हृष्टरोमा ।। (सुश्रुत ) ३. ............ श्लेष्मणा धनम् । पिच्छिलं तन्तुमच्छवेतं स्निग्धमात्रं कफान्वितम् ॥ अभीक्ष्णं गुरु दुर्गन्धं विबद्धमनुबद्धरुक् । निद्रालुरलसोऽन्नद्विडल्पाल्पं सप्रवाहिकम् ॥ सरोमहर्षः सोत्क्लेशो गुरुबस्तिगुदोदरम् । कृतेऽप्यकृतसंज्ञश्च................... ।।(अष्टाङ्गहृदय) ४. शुक्लं सान्द्रं श्लेष्मणा श्लेष्मयुक्तं विस्रं शीतं हृष्टरोमा मनुष्यः ।। (माधवकर ) ५. तेन श्लेष्मा शुष्कभेदारुचिः स्यात्सान्द्रं विस्रं जाड्यता रोमहर्षः। मन्दाग्नित्वं मन्दवेगो विशिष्टः सालस्योऽपि विद्धिसारः कफोत्थः ॥ ( हारीतसंहिता) ६. श्वेतं बलासबहुतो बहुल सुशीतं शीतार्दितातिगुरुशीतलगात्रयष्टिः। ___ कृत्स्नं मलं सृजति मन्दमनल्पमल्पं श्लेष्मातिसार इति तं मुनयो वदन्ति ॥ ( कल्याणकारक) ७. सान्द्रं सितं श्लेष्मविमिश्रितं स्यात् श्लेष्मातिसारे भृशगन्धि शीतम् ।। (वैद्यविनोद) ८. कफात्सान्द्रं श्वेतहिमं वर्चः ॥ ( अञ्जननिदान) उपर्युक्त उद्धरणों का विचार करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कफज अतीसार के सम्बन्ध में निम्नाङ्कित लक्षणों को अधिकांश स्वीकार करते हैं: १. कफज अतीसार में मल का वर्ण श्वेत रहता है। २. मल स्निग्ध, पिच्छिल और तन्तुओं से युक्त होता हैं । ३. मल विबद्ध (बंधा हुआ) और अनुबद्ध ( लग्न = लगा हुआ) आता है। ४. मल विस्त्र या आमगन्धी अतः दुर्गन्धित होता है। ५. मल में श्लेष्मा प्रचुर मात्रा में रहता है। ६. मल सान्द्र और बहुत होते हुए भी उसकी गति अल्पाल्प सरण की होती है। ७. मल बिना किसी शब्द के निकलता है। ८. मल के साथ प्रवाहिका होती है। ९. महत्त्व की बात यह है कि मलत्याग कर लेने पर भी मन में ऐसा लगा रहता है कि अभी और मलत्याग करना है । १०. मल शीतल होता है। ११. कफज अतीसार से पीडित रोगी का उदर, बस्ति और वंक्षण प्रदेश भारी या भरे हुए पाये जाते हैं। १२. रोगी में आलस्य तथा निद्रालुता की मात्रा बढ़ जाती है। १३. रोगी शिथिल सा पड़ा रहता है। १४. रोगी को भूख नहीं लगती और वह अन्न से द्वेष करता है। १५. मलत्याग करते समय सारे शरीर पर रोमाञ्च का हो जाना एक ऐसा लक्षण है जिसे प्रायः सभी आचार्यों ने स्वीकार किया है। १६. किसी किसी रोगी को उत्क्लेश (मतली) भी हो जाता है। (४) सान्निपातिक अतीसार इसके सम्बन्ध में निम्न लक्षणसाहित्य प्राप्त होता है१. तत्र शोणितादिपु धातुष्वतिप्रदुष्टेषु' हारिद्रहरितनीलमाञ्जिष्ठमांसधावनसङ्काशं रक्तं १. तत्र शोणितादिषु धातुपु नातिप्रदुष्टेषु । ( गंगाधर ) For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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