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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ विकृतिविज्ञान हैं। पेशी और त्वचा दोनों का सम्बन्ध होने के ही कारण इसे त्वचा पेशीपाक ( Dermatomyositis ) कहते हैं । इस रोग का ठीक कारण ज्ञात नहीं हो सका । कदाचित् यह कफ - रक्तजन्य ( allergic ) व्याधि हो । जब यह श्वसनपेशियों में हो जाता है तो फिर असाध्य ही हो जाता है । जीर्ण पेशीपाक उपसर्ग के कारण भी हो सकता है और विना उपसर्ग के भी । इसमें पेशी के सूत्र तान्तव ऊति में परिणत हो जाते हैं। जिसके कारण पेशी की क्रिया शक्ति नष्ट हो जाती है । मांसधराकलापाक ( Fibrositis ) - इसे पेशीय आमवात ( muscular rheumatism ) भी कह सकते हैं । यह अत्यधिक रुजाकर अवस्था है । इसमें शरीर की संयोजक ऊतियां और पेशियां दोनों में व्रणशोथ होता है । इसका प्रारम्भ पहले एक क्षेत्र में होकर फिर दूसरे में होता है । सर्व प्रथम जहां पाक प्रारम्भ होता है वहां पहले रक्ताधिक्य होजाता है और वह स्थान सूज जाता है जिसके कारण शूल होने लगता है उस स्थान पर लसीकोशा एकत्र होने लगते हैं तथा केन्द्र भाग नष्ट होने लगता है धीरे-धीरे रोग की तीव्रावस्था समाप्त होजाती है तथा जीर्णावस्था प्रारम्भ होने लगती है जिसमें तन्तूस्कर्ष ( fibrosis ) का प्राधान्य होता है । यह रोग अन्तर्पर्शकीय तथा सक्थि की पेशियों में प्रायशः देखा जाता है मांसधरकला के अतिरिक्त अन्य कलाओं को भी यह रोग आक्रान्त करता है जैसे वातनाडी आवरण ( nerve sheath ), रक्तवाहिनियों की प्राचीरें, सन्धियों के समीप या त्वचा के नीचे। इस रोग का कारण ठीक से ज्ञात नहीं हो सका। कुछ ऐसा समझते हैं कि कला के भीतर मेदस् के छोटे छोटे लव घुसकर इसे करते हैं । पूतिकेन्द्र शरीर में कहीं होने से इसके होने में सहायता मिलती है ऐसा भी कुछ का विचार है । अस्थिकर पेशीपाक ( Myositis Ossificans ) -- जब पेशी पर निरन्तर आघात होता है और पेशी के भीतर बराबर रक्तस्राव होता रहता है तो पेशी का पाक होते होते व्रणवस्तु बनने लगती है जो धीरे धीरे अस्थि का रूप धारण कर लेती हैं । अस्थिकर पेशीपाक १-स्थानिक, २ -सार्वदेहिक (generalised ) एवं ३ - प्रगामी (progressive) तीन प्रकार का होता है। स्थानिक का उदाहरण घुड़सवार की ऊरु संव्यूहनी गरिष्ठा ( adductor magnus ) पेशी में अस्थि बन जाने का है । प्रगामी अस्थिकर पेशीपाक में शरीर की कई पेशियों में अस्थि की पट्टियां (plates ) बन जाती हैं यह अवस्था बहुत कम देखी जाती है । ये पट्टियां पेशी की गति कम करते करते उसे पूर्णतः गतिहीन (स्तब्ध ) कर देती हैं । पृष्ठवंश की पेशियों में यह रोग होता है । इसी से मिलता जुलता एक और पेशीपाक होता है इसमें पेशी में तन्तूत्कर्ष तो होता है पर अस्थि निर्माण कार्य नहीं होता । यह व्रणशोथात्मक न होकर विहासात्मक अवस्था मालूम पड़ती है इसे प्रगामी तन्तुकर पेशीपाक ( Progressive Fibrosing Myositis ) कहते हैं। I For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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