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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ विकृतिविज्ञान चिकित्सक का यह परम धर्म है विशेषकर शल्य शालाक्य चिकित्सक का कि वह यह जाने रहे कि कौन व्यक्ति शोणप्रिय है कौन नहीं । एक बात और भी समझनी है कि शिशु के जीवन के आरम्भिक काल में १-३ वर्ष तक यह रोग भीषण रूप धारण करता है पर जन्म के समय गर्भनाल से अधिक रक्त का स्त्राव नहीं होता । पर जब सुन्नत ( circumcision ) कराया जाता है तो इसका रूप प्रकट हो जाता है । शोणप्रिय में रक्त की मात्रा अधिक नहीं निकलती पर प्रवाह लगातार चलता रहता है जिसकी पानी की टङ्की में हुए सूक्ष्म छिद्र से तुलना कर सकते हैं जो देर में ही सही पर सम्पूर्ण टङ्की को खाली कर डालने की अवश्यक्षमता रखती है । इस कारण आकस्मिक रक्तस्राव से शोणप्रिय का कालकवलित होना नहीं देखा जाता है | रक्तस्राव शरीर के भीतरी भागों में भी होता रहता है । इनमें सन्धियों का रक्तस्राव बहुत महत्त्वपूर्ण है । जानुसन्धि ( knee joint ) तथा कूर्परसन्धि ( elbow joint) में यह रक्तस्राव विशेष करके होता है । अन्य किसी भी सन्धि में भी हो सकता है । इसके कारण सन्धियां फूल जाती हैं । उनमें खूब उत्स्यन्दन होता है । और खूब ही शूल और वेदना भी होती है । प्रभावित सन्धि उष्णस्पर्शी, रक्तवर्ण की और समीपस्थ ऊतियाँ भी फूली हुई देखी जाती हैं । ज्वर १०१-१०२ फैरेनहाइट तक हो जा सकता है । सन्धि के अन्दर शुद्ध रक्त मिलता है पर ज्यों-ज्यों उसका प्रचूषण होता जाता है वहाँ बभ्रु वर्ण का आविल द्रव बन जाता है और वह सन्धिश्लेष्मल कला को भी बभ्रु कर देता है । सन्धायोकास्थि भी बभ्रु वर्ण से रंग जाती है । कभी-कभी यह रक्त शीघ्र प्रचूषित हो जाता है और सन्धि की क्रिया शक्ति यथावत् हो जाती है । पर जब प्रचूषण धीरे-धीरे होता है या उत्स्यन्द निरन्तर होता है तो सन्धि मुड़ सकती है या उसमें स्थायी स्थैर्य ( ankylosis ) हो जा सकती है जिसके कारण रोगी आजीवन विकृतांग हो जाता है । सन्धियों में रक्तस्राव के कारण बहुत विनाश हो सकता है । उनकी सन्धायीकास्थि नष्ट हो सकती हैं । स्नायु बर्बाद हो सकते हैं जिसके कारण अस्थियाँ अनावृत हो जाती हैं और उनमें अस्थि- सन्धिपाकवत् ( osteoarthritic ) परिवर्तन मिलने लगते हैं । अतिरिक्त अस्थिवृद्धि (osteophyte ) का निर्माण या अस्थीय सन्धिस्थैर्य हो तो सकता है पर होता अधिक नहीं है । पर तान्तव सन्धिस्थैर्य ( fibrous ankylosis ) मिल सकती है । उन परिवारों में जहाँ इस रोग का इतिहास मिलता है यदि सन्तानोत्पत्ति न होने दी जावे और शोणप्रिय सन्तति उत्पन्न करके उसे जीवन भर के लिए एक संकट का सामना करने के लिए बाध्य किया न जावे तो बहुत सुन्दर हो । निन्दित विवाह के निषेध का धर्मशास्त्रीय उपदेश भी ग्राह्य होना चाहिए । अनिन्दितैः स्त्रीविवाहैरनिन्द्या भवति प्रजा । निन्दितैर्निन्दिता नृणां तस्मान्निन्द्यान्विवर्जयेत् ॥ अनिन्दित स्त्री के साथ विवाह करने से सन्तान अनिन्द्य होती है तथा निन्दिता के साथ पुरुषों का समागम निन्द्य सन्तानोत्पत्ति करता है अतः निन्द्यों का परिवर्जन करे । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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