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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१३ रुधिर वैकारिकी ( thrombocytopenic purpura haemorrhagica ) में भी यही चित्र देखा जाता है जैसा कि ऊपर हमने इङ्गित किया है । इससे ऐसा आभास होता है कि इन दोनों रोगों में कोई न कोई सम्बन्ध अवश्य होगा। जो कारण अस्थिमज्जा की कामबन्दी कक्के अनघटित रक्तक्षय की उत्पत्ति करता है वही जब केवल बिम्बाणुओं पर आक्रमण करता है तो रक्तस्रावी नोलोहा उत्पन्न करता है ऐसा प्रतीत होता है। ___यह रोग यकृच्चिकित्सा से ठीक न होने के कारण घातक रक्तक्षय से अलग किया जा सकता है । असितरतीय सितरक्तता (aleukaemic leukaemia) और इस रोग में भेद करना कठिन होने पर भी उसमें प्लीहा यकृत् और लसग्रन्थियाँ जहाँ फूल जाती हैं वहाँ इसमें वे अपनी स्वाभाविक आकृति को नहीं छोड़तीं। अनघटित रक्तक्षय के निम्नरूप और भी मिल सकते हैं: १. मजक्षयिक रक्तक्षय ( Myelophthisic anaemia)-यह उत्तरजात अनघटित या अचयिक रक्तक्षय का ही एक प्रकार है। इसमें अस्थिमजा की रक्तजनक जति अर्बुदिक वृद्धि के द्वारा परिवर्तित हो जाती है। यह प्राथमिक और उत्तरजात दोनों रूप का देखा जाता है । यूइंग (ewing) के अर्बुद या मज्जार्बुद (myeloma) में यह प्राथमिक होता है तथा वक्ष, वृक्क, अवटुका, अष्ठीला तथा फुफ्फुस के कर्कटार्बुदों में उत्तरजातरूप में देखा जाता है। २. सितरक्तता (ल्यूकीमिया) में रक्तजनक ऊति, सितरक्तीय ऊति (leukaemic. tissue ) से भर जाती है। ३. अस्थिजारठ्य ( osteosclerosis) नामक रोग में अस्थि का स्थूलन आरम्भ हो जाने से अस्थिगतमज्जा के लिए बहुत थोड़ा स्थान रह जाता है। इसके कारण एक रक्तक्षय उत्पन्न हो जाता है जिसे अस्थिजारठिक रक्तक्षय (osteosclerotic anaemia) नाम दिया जाता है। ___४. सरक्त अस्थिमज्जा में कर्कटोत्कर्ष ( carcinomatosis ) होने पर सितरक्तरुहीय रक्तक्षय ( leuco-erethroblastic anaemia ) उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण रक्तक्षय थोड़ा होने पर भी रक्त में सन्यष्टि रुधिराणु ( nucleated red cells ) तथा मजकायाणु ( myelocytes ) पाये जाते हैं। यहाँ रक्तक्षय शोणांशिक होता है। ब्वायड का कथन है कि उपरोक्त इन अवस्थाओं में और कारणविहीन वास्तविक अनघटित रक्तक्षय में महत्त्वपूर्ण अन्तर यह होता है कि उपरोक्त अवस्थाओं में विकृत अस्थिमज्जा के अतिरिक्त शेष अस्थिमज्जा में उसका परमचय हो जाता है जिसके कारण रक्तप्रवाह में अप्रगल्भ लालकण (सन्यष्टिरक्त कोशा तथा जालकित लाल कोशा) तथा अप्रगल्भ श्वेतकायाणु ( मज्जकायाणु) पाये जाते हैं । रक्तचित्र घातक रक्तक्षय से पूर्णतया मिलता जुलता होता है। आगे चलकर जब मज्जा अधिकांशतः प्रतिस्थापित ( replaced ) हो जाती है तो रक्तचित्र अनघटित या अचयिक रक्तक्षय का हो जाता है। ७७, ७८ वि० For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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