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अभय रत्नसार। विदधातु भुवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ।।
५३-क्षेत्रदेवता-स्तुति । खित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं। अन्नत्थ । यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते किया। सा क्षेत्रदेवता नित्यं,भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥
५४-पच्चक्खाण-सूत्र । * नमुक्कारसहिअ-पञ्चखाण ।
(१) उग्गए सूरे नमुक्कार-सहिअं मुट्ठि-सहिअं पञ्चक्खाइ चउविहं पि आहारं-असणं, पाणं, खाइमं, साइमं; अण्णत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव- समाहि-वत्तिआगारेणं; विगईओ पञ्चक्खाइ अण्णस्थणाभोगेणं सह सागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसिटुणं उक्खित्त विवेगेणं पडुच्च मविखएणं पारिट्रावणियागारेणं महत्तरागारेणं; देसावगासियं भोग-परिभोगं पच्चक्खाइ अण्णत्थणाभोगेणं सहसागारेणं
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