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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५२ भक्ष्याभक्ष्य विचार । जीवोंकी उत्पत्ति हो जाती है । इसलिये भोजनकी थाली तो धो पोंछ कर पी जानी चाहिये। अकसर जीमन आदिमें लोग बहुतसी जूठन छोड़ देते हैं, श्रावकों को चाहिये कि न इतनी चीजें परोसें, न इतनी लें कि जूठन रह जाये । > ६- ऐसाही पानी के भी विषय में भी समझना चाहिये । पानीके बर्तनोंसे पानी काढ़ने का लोटा अलग रखना चाहिए । जूँठा बर्तन उसमें नहीं डुबोना चाहिए। गुजरात काठियावाड़ में तो यह बुराई बहुत है । सब भाई-बहनोंको इस दोष से बचनेकीजरूरत है । सुतक विचार । लड़के का जन्म हो तो १० दिन तक सूतक रहता है, इसी तरह लड़कीका हो तो १२ दिन । यदि लड़का या लड़की जन्म ले कर मरणको प्राप्त हो जाय तो केवल एक दिनका सूतक लगता है । जिस स्त्रीके बच्चा होता है, उसे एक मास तक सूतक पालन करना पड़ता है। कोई स्त्री या पुरुष विदेशमें मर जाय तो उसके लिये एकदिन सूतक रखना चाहिये । यदि अपने घर में नौकरनीको लड़का या लड़की हो तो तीन दिन तक सूतक लगता है। किसी स्त्रोको गर्भ रह कर गिर जाय तो जितने महीनेका गर्भ हो उतने दिन तक सूतक रखना पड़ता है । जिनके घर में जन्म-मरणका सूतक हो वह १२ दिन तक देवपूजन न कर सकें। मृतक के सतकमें घरके जिन आदमियोंने शवको उठाया हो वह १० दिन तक देव- पूजन न करें । और और बाहर के आदमी ३ दिन तक पूजन न करें । For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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