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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय-रत्नसार। सवित्त तो कभी व्यवहारमें नलाये। हाँ, यदि अग्निके द्वारा अविस कर लिया जाये, तो व्यवहार कर सकते हैं। अमरुदको आग दिखानेसे भी उसका बीज कठोर ही रहता है, इससे मिश्रताका दोष लगता है। ... २१ ईख और शहतूत सचित्त हैं । इसलिये सर्वथा त्याग करना चाहिये, ईखका रस निकालनेके दो घड़ी बाद अचित्त हो जाता हैं । २२ सीताफलको तो सवित्त त्यागियोंको अवश्यही त्याग देना चाहिये; क्योंकि वह तो कभी अचित्त होही नहीं सकता कारण, उसमें से बीज अलग नहीं हो सकते, इसी प्रकार जाम्बु, रयण, बोर, हरेबदाम या अंगुर आदि बिना वीज निकाले नहीं खाना चाहिये। .. २३बीजवाले केले भी सवित्त हैं, इन्हें भी नहीं खाना चाहिये। पके हुए केले छिलका उतार लेनेसेही अचित्त हो जाते हैं। ___ २४ पके हुए ककड़े या खरबूजेके कुल बीज निकाल कर दो घण्टेके बाद खाना चाहिये। २५ ककड़ीके बीज अलग नहीं किये जासकत्लो, इसलिये सचित्त नहीं खाना, पर तरकारी आदिमें अचित्त है। इसलिये खाना चाहिये। . २६ आमका रस निकाल, गुठली फैकनेके वाद दो घड़ीके अनन्तर खाना चाहिये। मादि वस्तुओं का ही त्याग किया है, उन्हें तो सचित्त या अचित्त कोई नहीं खाना चाहिये। For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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