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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । ६८१ विधिके मुताबिक पोसह लेकर पडिलेहण करे ॥ रात्रि पोसवाला प्रतिक्रमण के आदिमें इरियावहिय पढ़कर चौवीस थंडिलां पडिलेहरण करे। प्रतिक्रमणमें सात लाख पापस्थानककी जगह ठाणेकमणे चंक्रमणे इत्यादि पोसह अतिचार पढ़ ॥ जिसने दिनका पोसह न लिया हो और रात्रिका लिया हो तो वह सात लाख आदि बोले । प्रतिक्रमण करनेके बाद सज्झायका ध्यान करे । प्रहर रात्रि जानेपर संथारा पोरसी विधिके अनुसार पढ़ कर विधि शयन करे। पीछली रात्रिको ऊठकर नवकार मंत्र गिने | बाद इरियावहिय पढ़ कर खमासमण - पूर्वक कुसुमिण दुसुमिरणका काउरसग्ग करे । ( पोसहवाला कुसुमिण दुसुमिरणका काउस्सग्ग पहले करे पीछे चैत्यवंदन करे) सात लाखको जगह संथारा उवण इत्यादि पोसह अतिचार बोले | बाद प्रभात - पडिले की विधि के अनुसार पडिलेहण करे । तदनन्तर गुर्वादिकको वन्दन करे बाद पोसह पाले । ५७ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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