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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A.- - .- -- - .. ६५६ विधि-संग्रह। श्लेष्म औषध सारिखो जेहनो, तोजो खेल्लोसही नाम छै तेहनो॥५॥ देहना मैलथी कोढ दूरे हुवे, चोथी जल्लोसही नाम तेहनो ठौ । केश नख रोम सह अंग फरस्यां सही, रहै नही रोग सब्बोसही ते कही ॥ ६॥ एक इंद्रिय करी पांच इंद्रियतणा, भेद जाणे तिका नाम संभिगणना। वस्तु रूपी सहू जाणियै जिण करो, सातमी लबधि ते अवधिग्याने करी ॥७॥ ___ ढाल ॥२॥ आव्यो तिहां नरहर-ए एचाल॥ हिव आंगुल अढिय ऊणो मानुषक्षेत्र, संज्ञा पंचेंद्रि तिहां जे वसय विचित्र । तसु मननो चिन्तित जाणे थुल प्रकार, तेऋजमति नामे अट्टम लबधि विचार ॥ ८॥ संपूरण मानुषक्षेत्र संज्ञा वंत, पंचेंद्रिय जे छ तसु मन वातां तंत । सूखम परजायें जाणे सहू परिणाम, ए नवमी कहिये विपुलमती शुभ नाम ॥ ६ ॥ जिण लबधि प्रभावें ऊडी जाय आकाश, ते जंघाविज्जाचारण लबधि प्रकाश । जसु वचन सरापै खिणमें For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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