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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय - रत्नसार । ६४५ पायपंकज सेवता ॥ ऊपनो भूपतने अचंभो देख ए कारण किसो, जो कोइ ग्यानी गुरु पधारे पुछियै सांसो इसो ॥ १३ ॥ ( चाल ) चिन्तवतां रे चारतिया आया जिसे, राजा पिण रे पुहतो वंदने तिसे ॥ सुख देशना रे पूछे प्रश्न सोहामणो, कहो स्वामी रे पूरवभव बालकतणो ॥ (उल्लालो ) बालकतणो भव भूप पूछे कहै इण पर केवलि, रोहणी राणीनो भवांतर अने राजा नो वली || श्रीगुरु पासे पाछलै भव रोहणी तप आदस्यो, तपत सगते साधुभगते तुम्म भवसायर तो ॥ १३ ॥ ( चाल ) कहै राजा रे रोहरिणतप कम कीजिये, विधि भाखो रे जिम तुम पासे लीजीये ॥ तब मुनिवर रे विधि रोहणीरा तपतरणी, इम जंपेरे चित्रसेन राजाभरणी ॥ (उल्लालो) राजाभरणी विधि एह जंपै चन्द्र रोहतप श्रावियै, उपवास कोर्जे लोभ लीजै भली भावना भावियै ॥ बारमा जिनवरतणी प्रतिमा पूजिये मनरंगसुं, इम सात वरसा लगे कीजै तजी आलस अंगसुं ॥ १४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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