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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयतिहुण स्तोत्र | ३५. दरिय-पर- दरिसण देवय- जोइणि-पूयरण- खित्त वाल- खुद्दा - सुर-पसु-वय ॥ तुह- उत्तट्ट सुन सुठु, अविठुलु चिट्ठहि । इय तिहुअण-वरणसीह पास, पाचाई पणासहि ॥ १६ ॥ फणि-फणफार-फुरन्त- रयण-कर- रंजिय- नह-यल-फलिणीकंदल-दल तमाल-नीलुप्पल सामल । कमठासुर-उवसग्ग वग्ग-संसग्ग- अगंजिय । जय पच्चक्ख- जिस पास थंभणयपुर - ट्ठिय ॥ १७ ॥ मह मणु तरलु पमाण नेय, वायात्रि विसंठुलु । नेय तर रवि अविय सहावु, अलस-विहलंघलु ॥ तुह माहप्पु पमाणु देव, कारुण्ण- पवितउ । इय मइ मा अवहीर पास, पालिहि विलवंत ॥ १८ ॥ किं किं कप्पिउ नय कलुगु, किं किं व न जंपिउ । किं व न चिह्नित किट्टू देव, दी यमवलंबिउ ॥ कासु न किय निष्फल्ल ललिल, अम्हेहि दुहत्तिहि । तहवि न पत्तउ ताणु किंपि पड़ पहु परिचतिहि ॥ १६ ॥ तुहु For Private And Personal Use Only -
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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