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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२२ पूजा-संग्रह। तनु मान ॥ श्री० ६ ॥ परणी नार प्रभावती, भोग पुरंदर साम । राजलीला सुख भोगवै, पूरै वंछित काम ॥श्री० ७॥ तब लोकांतिक देवता, आवि जपै जयकार । प्रभु फागुण वदि बारसै, लीधो संजम भार ॥श्री० ८॥शुभ फागुण बदि बारसै, मनधर निरमल ध्यान। च्यार करम प्रभु चूरिया, पाम्यो केवलज्ञान ॥श्री० ६॥ ढाल २॥ सुख कारण भवियण-ए देशी॥ ततखिण तिहां मिलिया चलिया सुरनर कोडि, प्रभुना पदपंकज प्रणमैं बे कर जोडि ॥ बे कर जोडि मच्छर छोडी समवसरण विरतंत, माणक हेम रूपमय त्रिगडो छत्रत्रय झलकंत ॥ सिंहासण बैठा तिहां स्वामी चोविह धर्म प्रकास, बारै परखदा बैठी आगलि सुणै मन उल्हासै ॥ १०॥ तपने अधिकारै पखवासो तप सार, पडवाथी कीजै पनरह तिथी ऊदार ॥ पनरह तिथी कीजै गुरु मुख लीजै जिस दिन हुवै उपशम, श्रीमु. निसुव्रत नाम जपीजै वांदी देव उल्लास ॥ तप For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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