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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१६ पूजा - संग्रह | तब तहत कहे । पीछे खड़ े हो कर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संबुद्धा खामणेां अब्भुमिमि अभितर पक्खियं खामेउ ? कह । गुरु के 'खामेह' कहने पर 'इच्छ', खामेमि पक्खि यं' कहे और घुटने टेक कर यथाविधि पाक्षिक प्रतिक्रमणमें 'पनरसरहं दिवसागणं' 'पनर सरहं राई जं किंचि०' चातुर्मासिक-प्रतिक्रमणमें 'चउराहं मासा अठराहं पक्खाणं वीसोत्तरसयं राईदियाणं जं किंचि० और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणमें 'दुवाल सरहं मासाणं चउवीसरहं पक्खाणं तिन्निसयसट्ठि राइंद्रियाणं जं किंचि ० ' कहे । गुरु जब 'मिच्छामि दुक्कडं दे, तब अगर दो साधु उचरते होंतो पाक्षिकमें तीन, चातुर्मासिकमें पाँच और सांवत्सरिक में सात साधुओं को खमावे । बाद खड़ े हो कर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खियं आलोउँ ? कह । गुरुके 'आलोह' कह १. ने पर 'इच्छ', आलोएमि जोमे पक्खिन अइयारो को० पढ़ और बड़ा अतिचार बोले । For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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