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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ अभय रत्नसार । सिझहि तुह नामिण ॥ तुह नामिण अपवितो वि जण होइ पवित्तउ । तं तिहुअरणकल्लाण-कोस, तुह पास निरुत्तउ ॥ ४ ॥ खुदपउत्तइ मंत-तंत-जंताइ विसुत्तइ । चर-थिरगरल- गहुग्ग-खग्ग- रिउ वग्गवि गंजइ ॥ दुत्थियसत्थ अणत्थ- घत्थ, नित्थारइ दय करि । दुरियइ हरउ स पास देउ, दुरिय-करि केसरि ॥ ५ ॥ तुह आणा थंभेइ भीम- दप्पुदधुर- सुर-वर रक्खसजक्ख फणिंद-विंद चोरानल - जलहर ॥ जलथल- चारि-रउद- खुद्द - पसु - जोइणि जोइय | इय तिहुप्रक्लिंघित्राण, जय पास सुसामिय ॥ ६ ॥ पत्थिय- अत्थ अणत्थ-तत्थ, भत्ति-भरनिब्भर | रोमंचंचिय - चारु कार्य किन्नर - नर-सुर वर ॥ जसु सेवहि कम-कमल-जुयल, पक्खालिय- कलि-मलु । सो भुवण- त्तय सामि पास, मह मदउ रिङ-बलु ॥ ७ ॥ जय जोइय-मणकमल- भसल, भय — पंजर कुंजर | तिहुअण - For Private And Personal Use Only -
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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