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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० .. v - - - - - - - - पूजा-संग्रह। कुपथ्या ॥ जिनोक्त हुई सहजयीशुद्धध्यान, कहियैदर्शनंतेहपरमंनिधानं ॥ ५० ॥ विनाजेहथीज्ञान मज्ञानरूपं, चरित्रविचित्रं भवारण्यकूपं ॥प्रकृतिसातनेउपसमैक्षयतेहहोवे, तिहांआपरूपैसदाभापजोवै ॥५१॥ . __ ढाल ॥ सम्यग् दरसण गुण नमो, तत्व प्रतीत सरूपीजी॥ जसु निरधार स्वभाव छै, चेतन गण जे अरूपी जी॥ चाल ॥ जे अनप श्रद्धा धर्म प्रगटै सयल पर ईहा टलै, निजशुद्ध सत्ता भाव प्रगटै अनुभव करुणा उछलै ॥ बहु मांन परणितवस्तु तत्वे अहव सुखकारण पणे, निज साध्य दृष्टै सरब करणी तत्वता संपति गिणे ॥ ५२॥ ॥ ढाल ॥ शुद्धदेव गुरु. धर्म परीक्षा, सद्द. हणा परिणाम ॥ जेह पामीजै तेह नमीजै, सम्यगदर्शन नाम रे ॥ भ० ५३ सि ॥मल उपशम क्षय उपशम जेहथी, जे होइ त्रिविध अभंग। सम्यगदर्शन तेह नमीजै, जिनधरमै दृढ रंग रे For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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