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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८ सज्झाय-संग्रह | जन छेह ॥ ५७ ॥ उ० ॥ ख गले वे पुड मिले, पडे मुंडे लाल || बेटा बेटी ने वह, न करे सार संभाल ॥ ५८ ॥ उ० ॥ दस दृष्टाते दोहिलो लह्यो नरभव सार ॥ श्रीजिन धरम समाचरो, पांमोजिम भव पार ॥ ५६ ॥ उ० ॥ चरणपणे जे तप तपे, पाले निरमल शील । ते संसार तरी करी, लहे अविचल लील ॥ ६० ॥ उ० ॥ कोडि रतन कवडी सटै, कांइ गमे रे गिवार ॥ धरम पखै पि जीवनें, नहि कोइ आधार ॥ ६१ ॥ उ० ॥ काया माया कारमी, कारमो परिवार ॥ तन धन जोवन कारमो, साचो धरम संभार ॥ ६२ ॥ उ० ॥ चवदै राज प्रमांण ए, छे लोक महंत ॥ जनम मरण कर फरसियो, ते बार अणंत ॥ ६३ ॥उ०|| आप सवारथिया सहु, नही केहनो कोय ॥ विण स्वारथ अण पहुंचते, सुत पि वैरी होय ॥ ६४ ॥ उ० ॥ जरां न आवे जां लगे, जां लग सबल सरीर, धरम करो जीव तां लगे, होय साहसधीर ॥ ६५ ॥ उ० ॥ आरज For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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