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सज्झाय-संग्रह |
३६ ॥ ऊपज्यो अशुचिप जिहां, मल मूत्र कले स ॥ पिंड अशुचि कर पूरियो, किहां शुचि लव लेस ॥ उ० ४० ॥ तुरत रुदन करतो थको, जांमें जिण वार ॥ मात पयोधर मुख ठवै, पीये दूध तिवार । उ० ॥ ४१ ॥ दिन२ दीसे दीपतो, करै रंग अपार ॥ लाड कोड माता पिता, पूरै सुविचार ॥ उ० ॥ ४२ ॥ श्रोत्र इग्यारे नारिनें, नव नरने जांग || रात दिवस वहिता रहै, चैतो चतुर सुजाण ४३ ॥ उ० ॥ सात धातु साते त्वचा, छै सातसै नाडि || नवसे नाडी पिंडमें, तिम तीनसे हाड ॥ ४४ ॥ उ० ॥ संधि एकसो साठ है, सतोत्तर सो सम || तीन दोष पेसी पांचसै, ढांकी है चरम ॥ उ० ॥ ४५ ॥ रुधिर सेर दस देहमें, पेसाब सरीष ॥ ॥ सेर पांच चरबी तिहां, दोय सेर पुरीष ॥ उ० ४६ ॥ पित्त टांक चोसठ अछे, वीरज बत्तीस ॥ टांक बत्तीस सलेखमां, जाणै जगदीस ॥ ४७ उ० ॥ इण परिमाणथको यदा, उछो अधिको था य ॥ व्यापै रोग सरीरमें, नवि वाजे काय ॥ ४८ ॥
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