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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार। ५३१ नरक मझार वि. ॥ सा०॥ ६॥ छठे चोरीने विसने करी, जीव लहे दुक्ख जोर वि०॥ मुंजदेव राजायें मारियो, चावो हुंडक चोर वि० ॥ सा० ॥७॥ परस्त्रीय संगत कुविसन सातमें, हाणि कुजस बहु होय वि० ॥ राणो रावण सीता अपहरी, नास लंकानो रे जोय वि० ॥ सा० ॥८॥ इम जांणीने भव्य तुमे आदरो, सीख सुगुरुनी रे सार वि० ॥ इण भव परभव आणंद अतिघणा,कहे धरमसी सुखकारवि०॥सा ॥६॥ ॥वैराग्यकी सज्झाय ॥ भूलो मनभमरा कांइ भमै, भमियो दिवस ने रात ॥मायारो लोभी प्रांणियो, भमियो परमल जोत ॥१॥ भू०॥ कंभ काचो काया कारमी, जेहना करो रे जतन्न ॥ विणसतां वार लागे नही, निरमल राखो रे मन्न ॥ २ ॥ भू०॥ केहना छोरू केहना वालरू, केहना माय नै बाप॥ ओ जीव जासी एकलो,सोथे पुण्यनें पाप ॥३॥ भू०॥ आस्या तो डूंगर जेवड़ी, मरवो पगला रे For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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