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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir V .. ........ .. ... .. . .. ...... . ४८४ सम्मेत शिखरजीका रास। अरु गुणतीस हजार ॥ एकत्तर चौ लख सहस, श्रावकणी सुविचार ॥ ४॥ सुरी सुतारा सुर अजित,श्रीसंघ सानिधकार॥ सहस साधु परिवारसं, आए सिखर सुचार ॥ ५ ॥ मास संलेखण कर प्रभु, मुक्ति गए इह ठोर ॥ तीरथ महिमा महियलै, प्रगटी च्यारुं ओर ॥६॥ इमहिज शितलनाथनो, हिव सुणज्यो अधिकार ॥ भदिलपुर दृढग्थ पिता, मात नंदा सुखकार ॥७ लंछन सुभ श्रीवच्छनो, श्रीशीतल जिनचंद ॥ कंचनवरण नेउ धनुष, मान सरीर अमंद॥८॥ एक लाख पूरब कह्यो, प्रभुनो आयुप्रमाण ॥इक्यासी गणधर कह्या, मुनि इक लाख सुजाण ॥६॥ एक लाख चालीस सहस,श्रमणी संख्या ओर ॥ सहस तयांसी दोय लख, श्रावक संख्या जोर ॥ १०॥ सहस अठावन लक्ष चौ, श्रावकणी सुविचार ॥ देवी अशोका ब्रह्म यक्ष, सहु संघ सानि धकार ॥ ११॥ सिखरसमेत सहस्र एक, साधूने For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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