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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० सम्मेत शिखरजीका रास । तसु तीनसे, लंछन क्रोंच साह्रै सुभगे हसे ॥ पृर लाख पच्यासी उ ए, इकसौ गणधर गुण गण भाउ ए ॥ उल्लालो । भाउ ए मुनि त्रिण लाख सोहे सहस वोस प्रमांण ए, पण लक्ष तीस हजार साध्वी श्रावक दोय लक्ष जाण ए ॥ संख्या इक्यासी सहस ऊपर श्रावका इम आणिये. पण लाख सोले सहस तुम्बरु महाकाली मानिये ॥ श्रीशिखर ऊपर सात संख्या सहस साधु सुरंग ए, कर मासकी संलेपणा प्रभु मुक्ति पुहता चंग ए ॥ ३ ॥ चाल ॥ इम कोसंबीनगरी तात ए, धरनृप तात सुसीमा मात ए, पदम प्रभु तसु अंगज नाथ ए, लंछन कमलतणो सुभ हाथ ए ॥ उल्लालो | हाथ ए धनुष प्रमाण पूरा अढाई स तनु कहौ, तीन लाख पूरब थित कहावे एकसा गणधर लहो || लख तीन तोस हजार साधू वास सहम लख च्यार ए साधवी दोय लख सहस छिहतर श्रावक संख्या सार ए ॥ ४ ॥ चाल ॥ ; For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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