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स्तवन-संग्रह। वाजित दुंदुभि-नाद॥अन्यत्र कियो प्रभु पारणो जी, मनमें थयो विषवाद ॥ ज०॥१६॥ हूं जगमें अभागियो जी, मेरे न आया सांम ॥ कल्पवृत किम पांमीये जी, मारूमंडल ठाम ॥ज०॥ १७॥ जेता मनोरथ में किया जी, तेता रह्या मनमांहि ॥॥ निरधन जिम २ चिंतवे जी, तिम २ निरफल थाय ॥ ज० ॥ १८॥ स्वामी तिहां कियो पारणो जी, कियो अन्यत्र विहार ॥ आया पास संतानिया जी, तिहां मुनि केवलधार ॥ज०॥ १६ विशालापुर राजियो जी, लोकास्युं आणंद ॥राय प्रश्न पूछे इस्यो जी, सुगुरु चरण अरविंद ॥ ज० ॥ २० ॥ मेरे नगरमें को अछे जी, जीव पुण्य जसवंत ॥ कहे केवली आज तो जी, जीरणसेठ महंत ॥ ज० ॥ २१ ॥ राय कहे किण कारणे जी, जीरणसेठ महंत ॥ दांन दियो जिन वीरने जी, पूरणसेठ महंत ॥ ज० ॥ २२॥ राय प्रने कहे केवली जी, पूरण दीनो दान ॥ हेमवृष्टि फल
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