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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ अभय रत्नसार। संचित पाप परा सब मेटियै॥ मन धर भाव अनंत चरण युग सेवतां, अणहूंते एक कोड़ि चतुर विध देवता ॥ १ ॥ ध्यान धरूप्रभू दूरथको में ताहरो,जल जिम लीनो मीन सदा मन माहरो॥ भव २ तुमहीज देव चरण हूं सिर धरु, भवसायरथी तार अरज आहोज करूं ॥२॥ भूख त्रिषा तप सीत आतप ए ना सहै, तप जप संजम भार तणी नवी निरवहै । पिण जिनवरजीना नांमतणी आसत घणी, एहिज छै आधार जगत गुरु अम्ह भणो ॥ ३॥ तुम्ह दरिसण विण स्वांम भवोदधि हूं फिस्यो, सहीया दुक्ख अनेक न कारज को सस्यो ॥ मिलिया हिव प्रभु मुझ सदा सुख दीजिये, चौ गइ संकट चुर जगत जस लीजिये ॥ ४ ॥ यादवपति श्रीकृष्णतणी आरति हरी, सैन्या कोध सचेत जरा दूरे करी ॥ परचा पूरण पास रयण जिम दीपतो, जयवंतो जिणचंद सयल रिपु जीपती ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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