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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ स्तवन-संग्रह। A.A. ..... .. . .. ...... रे, पुरुष किस्युं मुझ नाम ॥ ५० ॥ १॥ चरम नयण करी मारग जोवतोरे, भूलो सयल संसार। जेणें नयणे करो मारग जोइये रे, नयण ते दिव्य विचार ॥ पं० ॥ २ ॥ पुरुष परंपर अनुभव जोवतां रे, अंधोअंध पुलाय ॥ वस्तु विचारे रे जो आ गमे करी रे, तो चरण धरण नही ठाय ॥ ५० ॥ ३॥ तर्क विचारे रे वाद परंपरा रे, पार न पहुंचे कोय ॥ अभिमते वस्तु वस्तुगते कहे रे, ते विरला जग जोय ॥ ५० ॥ ४॥ वस्तु विचारे रे दिव्य नयणतणे रे, विरह पड्यो निरधार॥ तरतम जोगे रे तरतम वासना रे, वासित बोध आधार ॥ पं० ॥ ५॥ काल लबधि लही पंथ निहालसं रे, ए आस्या अविलंब ॥ ए जग जीवे रे जिनजी जां. णज्यो रे, आनंदघन मत अंब ॥५०॥६॥ ॥ श्री संभवनाथजी का स्तवन ॥ ॥ रातड़ी रमिने किहांथी आविया रे ॥ ए चाल | ॥ संभव देव ते धुर सेवो सबै रे, लहि प्रभू For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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