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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ स्तवन- संग्रह | sts with so शिवपद शर्म ॥ ४ ॥ भ० ॥ संप्रति कालै रे श्री जिनराजनो रे, पूजीजे प्रतिबिंब ॥ प्रतिदिन लहियै रे प्रभु सुप्रसादथी रे, मन वांछित अविलंब ॥ ५ ॥ भ० ॥ श्रीजिनवरनो विंब विलोकतां रे. दुष्कृत दूर पुलाय ॥ इन्द्रिय निग्रह सुग्रह संप रे, समकित पण दृढ थाय ॥ ६ ॥ भ० ॥ श्रीसदगुरुना मुखथी सांभल्या रे, एहवा वचन विलास ॥ ते बहुमाने रे निज चित्त में धरया रे, नेमी सुत भाईदास ॥७ भ०॥ चैत्य कराव्यं रे सुंदर सोभतो रे, मनधर अधिक उलास ॥ शीतल प्रभुनो रे बिंब भरावियो रे, सहसफरणा वलि पास ॥ ८॥ भ० ॥ वरस अठारह सत्तावीसमें रै, माधव मास मकार ॥ उज्जल द्वादशी दिवसे आवियों रे, बिंब अनेक उदार ॥ ६ ॥ भ० ॥ एकसो इक्यासी सहु मेले थया रे, बिंबादिक सुविचार ॥ कीध प्रती ते दिन तेही रे, विधि पूर्वक मन धार ॥१० ॥ भ० ॥ श्रीजिनलाभ सूरीश्वर दीपता रे, श्री For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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