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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ स्तवन -संग्रह | तीनतणो परिहार ॥ ६ ॥ भ० ॥ ग्यान दरसण चारित्रना जी, संग्रह तीन आचार ॥ तजो विराधन तीन एजी, एह अरथ अवधार ॥ भ० ॥७॥ मन वच कायानी सदाजी, गुपति गृहीजे शुद्ध ॥ परिहरिये वलि जांणनें जी, तीनें दंड विशुद्ध ॥ भ० ॥ ८ ॥ पड़िलेहण पचवीस ए जी, मुंहपत्ती नी सार || हिव पड़िलेहा अंगनी जी, ते पिण चतुर विचार ॥ भ० ॥ ६ ॥ हास्य अरति रति धोयनें जी, शुद्ध करो वांम वाह ॥ तजभय शोक दुगंछना जी, दक्षिण पण करै साह ॥ १० ॥ भ० धुरली लेस्या तीन ए जी, ते सिरथी करि दूर ॥ रिद्ध रस साता गारवोजी, करि मुखथी चकचूर ॥ ११ ॥ भ० ॥ काढ सल्य तीन उरथकी जी, माया नियाण मिथ्यात ॥ च्यार कषाय वेव गलथी जी, क्रोधादिक करी घात ॥ १२ ॥ भ० ॥ तज षटकाय विराधना जी, चरण चिन्हे शुद्ध होय ॥ ए पड़िलेहण अंगनी जी, पचवीसे तू जोय १३ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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