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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ स्तवन-संग्रह। गन्भय तिरि देव, नरग वायुनें च्यार सेसने तीनं भेव ॥ दिट्टी दोय विगलमें थावरने मिथ्यात, सेसने तीन दिट्ठी जिम प्रवचनमें विक्षात ॥८॥ थावर वितिनें एक अचक्ख दसण होय, चौरिद्री ते चक्षु अचक्खु दसण होय ॥ मनुजने च्यार सेस दडगमें दसण तीन, नाण अनाण तीन सुर तिर नारगनें लीन ॥ ६ ॥ थावर दोय अनारण विगल दो नाण अनाण, गन्भय मण ने तीन अनाणनें पांचू नाण ॥ सुर नारग एकादस तिरनें तेरै जोग, मनुजने परै च्यार विगलने जोग प्रयोग ॥ १० ॥ वाऊकायनें पांच तीन थावर संयोग, मनुजने बार नगर तिरदेवनें नव उपयोग ॥ विगल दुगै पण षड़ चौरिंद्री थावर तीन, उववाय इग चवण दार दोनं समकीत ॥ ११॥ एग समै संख्यात असंख्या चवण पपात, गव्भय विकलेंद्री नायर सुरनी ख्यात ॥ मणा अथावर वणस्सइ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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